जन जन को मीत बना ले ,
जन जन से प्रीत निभा ले ।अपनेपन का गीत गाकर ,
अपनेपन की रीत निभा ले ।।
सबको अपना बनाकर देख ,
जन जन अपना मिल जाएगा ।
रिश्ते का रिश्ता ढूॅंढ़कर देख ,
अपना हृदय ये खिल जाएगा ।।
रिश्ते का रिश्ता ढूॅंढ़ते चलो ,
ये जाति पाॅंति मिट जाएगी ।
कायम होंगे सारे रिश्ते अपने ,
दुनिया सिमट एक हो जाएगी ।।
अपनेपन का यह दृढ़ शक्ति ,
दुनिया में अलग दिख जाएगा ।
भारत की यह संस्कृति अपनी ,
विश्व भी हमसे सीख जाएगा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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