एहसान फरामोश
डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
कसमें ईमानदारी की
हमेशा खाते रहे,
छुपाकर खंजर,
दिल में चुभाते रहे !
तेरे जलवे जमाने ने
जी भर कर देखा,
कल तक तुम क्या थे,
आज क्या से क्या हो गए !!
बदल न सके उनकी
किस्मत की रेखा !
जिनकी उंगली पकड़कर
तुम यहां तक आए ..!!
दुनिया चलती रही
अपनी रफ्तार से,
लेकिन तुम बेफिक्र
महफिल सजाते रहे!
पर आज तक तुमने,
कुछ भी नहीं सीखा,
जबकि समय से लोग,
सब कुछ सीखते रहे
बदल न सके उनकी
किस्मत की रेखा!
जिनकी उंगली पकड़ कर
यहां तक आए ...!!
हमराही बनकर
राह दिखाया जिसने,
वो तन्हा घूंट-घूंट कर
जीवन जी रहे !
एहसान फरामोशी की
भी हद होती है,
वो बिलखते रहे
और तुम मुस्कुराते रहे !
बदल न सके उनकी,
किस्मत की रेखा!
जिनकी उंगली पकड़ कर
यहां तक आए ..!!
डॉ. रवि शंकर मिश्र "राकेश"
( मौलिक रचना )
गया जी,
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