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क्या भारत में धर्म आधारित कानून, आयोग, स्कूल और योजनाएं सेक्युलर राष्ट्र की आत्मा के विरुद्ध हैं?

क्या भारत में धर्म आधारित कानून, आयोग, स्कूल और योजनाएं सेक्युलर राष्ट्र की आत्मा के विरुद्ध हैं?


लेखक: डॉ. राकेश दत्त मिश्र

भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है। इसकी प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्षता' को स्पष्ट रूप से शामिल किया गया है। इसका सीधा तात्पर्य यह है कि राज्य किसी धर्म विशेष का पक्ष नहीं लेगा, सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखेगा और किसी भी धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। लेकिन जब हम भारत की नीतियों, योजनाओं, आयोगों, स्कूलों, कानूनों और बजट आवंटनों पर गौर करते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है कि 'धर्मनिरपेक्षता' की व्याख्या और उसका व्यवहारिक स्वरूप परस्पर विरोधाभासी हैं।

यह प्रश्न इसलिए आवश्यक हो जाता है: यदि भारत एक सेक्युलर राष्ट्र है तो मजहब के आधार पर आयोग, मंत्रालय, कानून, बोर्ड, स्कूल-कॉलेज और वज़ीफा-लोन जैसी व्यवस्थाएं क्यों बनाई जाती हैं? क्या यह संविधान की मूल भावना और समानता के सिद्धांत के प्रतिकूल नहीं है?
1. भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा

धर्मनिरपेक्षता (Secularism) का मूल तात्पर्य यह है कि राज्य धार्मिक मामलों से अलग रहेगा, और किसी धर्म विशेष का न तो पक्ष लेगा, न विरोध। संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 25 से 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के अधिकारों की पुष्टि करते हैं।

अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता

अनुच्छेद 15: धर्म, जाति, लिंग, नस्ल, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव निषिद्ध

अनुच्छेद 25-28: धार्मिक स्वतंत्रता

संविधान के रचयिताओं का उद्देश्य यह था कि भारत एक ऐसा राष्ट्र बने जहाँ किसी नागरिक को उसके धर्म के आधार पर विशेषाधिकार या वंचना न झेलनी पड़े।
2. वास्तविकता में धर्म आधारित व्यवस्थाएं

हालांकि संविधान धर्मनिरपेक्षता की बात करता है, लेकिन वर्तमान व्यवस्था में मजहब के आधार पर अनेक संस्थाएं, आयोग, और सुविधाएं संचालित हैं:
(क) धर्म आधारित आयोग/मंत्रालय:

अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय (Ministry of Minority Affairs): विशेष रूप से मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन समुदाय के लिए।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities): धर्म के आधार पर शिकायतों की सुनवाई करता है।
(ख) धार्मिक बोर्ड व ट्रिब्यूनल:

वक्फ बोर्ड: केवल मुस्लिम संपत्तियों के लिए विशेष बोर्ड।

हज कमेटी: मुस्लिम तीर्थयात्रा के लिए सरकारी व्यवस्था।

शिया-सुन्नी वक्फ ट्रिब्यूनल: केवल मुस्लिम वक्फ विवादों की सुनवाई।
(ग) धर्म विशेष के शैक्षणिक संस्थान:

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU), जामिया मिलिया इस्लामिया: मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित संस्थान।

मदरसा बोर्ड, मिशनरी स्कूल: धार्मिक पाठ्यक्रम और वित्तीय अनुदान।
(घ) धर्म आधारित योजनाएं/वजीफे/लोन:

प्री-मैट्रिक, पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप: मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि को आरक्षित।

माइनॉरिटी लोन योजना (NMDFC): मुस्लिमों को सब्सिडी पर लोन।
(ङ) धर्म आधारित कानून:

शरियत कानून (मुस्लिम पर्सनल लॉ): तलाक, निकाह, विरासत आदि में भिन्नता।

हिंदू विवाह अधिनियम, मुस्लिम विवाह अधिनियम: धर्मानुसार कानून की व्यवस्था।
3. क्या यह संविधान के मूल स्वरूप के विरुद्ध है?
(क) अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन?

यदि संविधान समानता का अधिकार देता है और धर्म के आधार पर भेदभाव को निषिद्ध करता है, तो धर्म विशेष को योजनाएं देना असमानता नहीं तो और क्या है?
(ख) बहुसंख्यकों की उपेक्षा?

हिंदू समुदाय को अल्पसंख्यकों की तरह योजनाएं नहीं मिलतीं, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति समान हो। क्या यह बहुसंख्यकों के साथ भेदभाव नहीं है?
(ग) 'सेक्युलर' का पक्षपाती अर्थ?

भारतीय सेक्युलरिज़्म का व्यावहारिक स्वरूप यह हो गया है: “राज्य सभी धर्मों में हस्तक्षेप करेगा, लेकिन मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यकों के पक्ष में।” यह समानता का नहीं, तुष्टिकरण का संकेत है।
4. ऐतिहासिक कारण और राजनीतिक उद्देश्य

भारत के स्वतंत्रता के बाद 'धर्मनिरपेक्षता' को राजनीतिक मजबूरी के रूप में स्वीकार किया गया। विभाजन के बाद मुसलमानों की जनसंख्या के भय से कांग्रेस ने उनके प्रति विशेष नीति अपनाई। इसी के तहत अल्पसंख्यकवाद की नींव रखी गई।

1950 के दशक में ही वक्फ बोर्ड, मदरसे, और पर्सनल लॉ को बनाए रखने की अनुमति दी गई। धीरे-धीरे ये राजनीतिक वोटबैंक बन गए और इनपर सवाल उठाने वालों को सांप्रदायिक करार दिया जाने लगा।
5. वैकल्पिक दृष्टिकोण: धर्मनिरपेक्षता बनाम तुष्टिकरण

भारत में सेक्युलरिज्म की व्याख्या धर्मनिरपेक्षता नहीं, बल्कि धर्म-तुष्टिकरण बन गई है। जहाँ धर्म के आधार पर कुछ को विशेष अधिकार और कुछ को वंचित किया जाता है। यह भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करता है और सामाजिक एकता को भी बाधित करता है।
6. समाधान क्या हो?
✅ 1. समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code):

धर्म आधारित व्यक्तिगत कानूनों को हटाकर समान कानून लागू हो।
✅ 2. योजनाओं का लाभ सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर:

वजीफा, लोन, आरक्षण सिर्फ गरीबी, अशिक्षा, पिछड़ेपन के आधार पर मिले — धर्म के आधार पर नहीं।
✅ 3. धार्मिक बोर्डों का पुनः मूल्यांकन:

वक्फ बोर्ड या हज कमेटी जैसे संस्थानों का सरकारी धन से संचालन बंद हो।
✅ 4. संविधान की मूल भावना की पुनर्पुष्टि:

राज्य को हर धर्म से समान दूरी बनाए रखनी चाहिए — न समर्थन, न विरोध
भारत की आत्मा 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की है। यह भूमि हर धर्म का सम्मान करती है, लेकिन राज्य का धर्म से दूरी बनाए रखना आवश्यक है। यदि मजहब के आधार पर आयोग, बोर्ड, योजनाएं और कानून चलते रहेंगे, तो यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 25, और प्रस्तावना का सीधा उल्लंघन होगा। इससे एक समान नागरिक की अवधारणा ध्वस्त होगी और लोकतंत्र पक्षपात का शिकार हो जाएगा।

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