दस्तक

लेखक मनोज मिश्र इंडियन बैंक के अधिकारी है|
दे रहा हूँ फिर से दस्तक बुरा मत माननाहमसफर हूँ मैं तेरा इसको पहचान ना
तेरे कदमों तले रख दूंगा जन्नत जाने जाँ
तेरी एक मुस्कुराहट है मेरा पूरा जहां
चार दिन में पसरी हुई जिंदगी है जमाना
सही बात है कौन रखता है सामान पुराना
तीन दिन तो जी गए सब अपने लिए
चौथे दिन में तो होगा ही सुनना सुनाना
मिसर जीने की हवस कुछ होती है ऐसी
खुद ही लगने लगता है यही आशियाना पुराना
कौन क्या कहता है इस पर न जाओ यारो
कल भी जिये थे शान से आज भी जारी है तराना -
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