Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

बंगाल बना नरक! हिन्दुओं पर अत्याचार, बेटियों की अस्मिता खतरे में!

बंगाल बना नरक! हिन्दुओं पर अत्याचार, बेटियों की अस्मिता खतरे में!

  • हर दिन हिन्दू बहन-बेटियों पर अत्याचार, हिन्दुओं का पलायन—क्या यही है लोकतंत्र?
  • बंगाल जल रहा है और केंद्र सरकार मौन है!
  • कब लगेगा राष्ट्रपति शासन? क्या वोट-बैंक के आगे राष्ट्रहित हार जाएगा?

बंगाल, भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक रहा है। इस भूमि ने चैतन्य महाप्रभु से लेकर रवींद्रनाथ ठाकुर और स्वामी विवेकानंद तक अनेकों संतों, विचारकों और क्रांतिकारियों को जन्म दिया है। कभी यह राष्ट्रवाद का गढ़ था, आज़ादी की पहली लहरें इसी माटी से उठीं। परंतु आज वही बंगाल हिंसा, अराजकता और वैमनस्य का प्रतीक बनता जा रहा है। एक विशेष राजनीतिक दल की सत्ता ने बंगाल की गंगा-जमुनी तहज़ीब को सांप्रदायिक और वैचारिक असहिष्णुता में बदल दिया है।

आज की भयावह सच्चाई यह है कि बंगाल में हिन्दू समाज असुरक्षित है। आए दिन हिन्दू बहन-बेटियों के साथ बलात्कार, अपहरण, जबरन धर्मांतरण और हत्या की खबरें आती हैं। सत्ताधारी दल की खुली छूट, पुलिस प्रशासन की निष्क्रियता और न्यायिक तंत्र की सुस्ती ने पीड़ितों को न्याय से कोसों दूर कर दिया है। जिन जिलों में हिन्दू कभी बहुसंख्यक थे, वहाँ अब उनका पलायन शुरू हो चुका है। भय, असुरक्षा और अपमान से त्रस्त हिन्दू परिवार अपने पुश्तैनी घर-ज़मीन को छोड़ने पर मजबूर हैं।

यह स्थिति केवल बंगाल की आंतरिक समस्या नहीं है, यह भारत के संघीय तंत्र, राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक समरसता की भी चुनौती है। केंद्र सरकार, जो पूरे देश की सुरक्षा की अंतिम जिम्मेदार है, वह भी बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने से कतराती नज़र आ रही है। यह प्रश्न अत्यंत गंभीर है: जब राज्य सरकार संविधानिक जिम्मेदारियों का पालन नहीं कर रही, जब नागरिकों के मौलिक अधिकार खतरे में हैं, तो केंद्र की निष्क्रियता क्या किसी राजनीतिक विवशता का परिणाम है?

  • इस आलेख में हम निम्नलिखित प्रश्नों की गहराई से पड़ताल करेंगे:
  • क्या बंगाल में कानून-व्यवस्था की स्थिति वाकई राष्ट्रपति शासन लायक है?
  • हिन्दू समाज पर हो रहे अत्याचारों को कैसे प्रमाणित किया जाए?
  • केंद्र की चुप्पी के क्या कारण हैं — राजनीतिक, संवैधानिक या रणनीतिक?
  • मीडिया, न्यायपालिका और तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग की भूमिका क्या है?
  • और सबसे महत्वपूर्ण — अब हमें क्या करना चाहिए?


भारतीय जन क्रांति दल (Demo) इस विषय को केवल राजनैतिक नहीं, बल्कि एक राष्ट्रवादी, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रश्न मानता है। इस आलेख के माध्यम से हमारा उद्देश्य केवल प्रश्न उठाना नहीं, बल्कि समाधान की दिशा में जनचेतना जगाना है।

बंगाल में अपराध का वर्तमान परिदृश्य

पश्चिम बंगाल, जो कभी भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में जाना जाता था, आज अपराध, सांप्रदायिक तनाव और प्रशासनिक विफलता का केंद्र बनता जा रहा है। हिंसा अब कोई असामान्य घटना नहीं रही, बल्कि यह राज्य की दिनचर्या का हिस्सा बन गई है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन अपराधों का सबसे अधिक शिकार हिन्दू समाज बनता जा रहा है, विशेषकर हिन्दू महिलाएँ, बहन-बेटियाँ और बच्चे।

1.1 एनसीआरबी (NCRB) के आँकड़ों की पड़ताल:

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार:
महिला अपराधों में बंगाल देश के शीर्ष तीन राज्यों में रहा है।
2022 में बंगाल में बलात्कार, यौन उत्पीड़न और अपहरण के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।
राज्य में सामूहिक हिंसा, साम्प्रदायिक तनाव और दंगे के आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि स्थिति सामान्य नहीं है।

2021-2023 के बीच बंगाल में जो प्रमुख घटनाएं घटीं, वे केवल संख्या नहीं हैं, बल्कि वे इस बात की साक्षी हैं कि कैसे एक राजनीतिक दल द्वारा पोषित अपराधी तंत्र ने पूरे राज्य को बंधक बना लिया है।

1.2 हिन्दू समाज पर लक्षित हमले:

बंगाल में हो रही हिंसा का स्वरूप केवल आपराधिक नहीं है — वह एक विशेष धार्मिक और राजनीतिक रंग लिए हुए है। कुछ ज्वलंत उदाहरण:
संध्या राय (उत्तर 24 परगना): एक स्कूली छात्रा जिसका अपहरण कर जबरन धर्मांतरण कराया गया। मामला मीडिया में आने पर परिजनों पर ही पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया।
रामनवमी और दुर्गा विसर्जन के समय रुकावटें, पत्थरबाजी, आगजनी, और हिन्दू धर्म-स्थलों पर हमले अब सामान्य घटनाएं बन चुकी हैं।
2023 हावड़ा हिंसा, बीरभूम नरसंहार, नादिया बलात्कार केस — ये केवल पुलिस रिपोर्ट नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की विफलता का प्रतीक हैं जो हिन्दुओं को नागरिक अधिकार नहीं दे पा रही।

1.3 राज्य सरकार और पुलिस की मिलीभगत:

राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित पुलिस प्रशासन न केवल पीड़ितों की मदद करने में असफल रहा है, बल्कि कई मामलों में अपराधियों के साथ मिलीभगत के आरोप लगे हैं। उदाहरण के लिए:
कई मामलों में एफआईआर दर्ज नहीं होती या उसे बदल दिया जाता है।
विरोध करने वाले हिन्दू संगठनों पर ही गैर-कानूनी गतिविधि निरोधक कानून (UAPA) लगा दिया जाता है।
वीडियो साक्ष्यों के बावजूद, मुस्लिम समुदाय से जुड़े अपराधियों पर कार्यवाही नहीं होती।

यह स्पष्ट करता है कि बंगाल में "सलेक्टिव जस्टिस" का खेल खेला जा रहा है। और यह खेल एक खास विचारधारा के संरक्षण में फल-फूल रहा है।

1.4 अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ:
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) तक में भारत की छवि पर प्रश्नचिन्ह उठाए गए।
राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग, और अल्पसंख्यक आयोग ने कुछ मामलों में स्वतः संज्ञान लिया, परन्तु राज्य सरकार ने सहयोग नहीं किया।
केंद्रीय एजेंसियों जैसे CBI, NIA द्वारा जांच की मांग करने पर राज्य सरकार उन्हें अनुमति नहीं देती।

बंगाल की स्थिति एक साधारण ‘लॉ एंड ऑर्डर’ की समस्या नहीं है, यह एक सांस्कृतिक और धार्मिक संकट है। यहाँ राज्य सरकार की निष्क्रियता नहीं, बल्कि सक्रिय पक्षपात और वैचारिक युद्ध देखने को मिलता है। हिन्दू समाज को भय के वातावरण में जीने पर मजबूर किया जा रहा है, और यह भारत के संविधान पर सीधा आघात है।
हिन्दू समाज का पलायन – कारण और प्रभाव

पलायन किसी भी सभ्यता के लिए सबसे बड़ा सामाजिक संकट होता है, और जब यह पलायन डर, दमन और असुरक्षा के कारण हो, तो यह केवल जनसांख्यिकी बदलाव नहीं बल्कि सभ्यता का पतन होता है। बंगाल में हिन्दू समाज का पलायन अब मात्र एक "प्रचार" नहीं, बल्कि जमीनी सच्चाई बन चुका है — जिसे या तो नजरअंदाज़ किया जा रहा है या जानबूझकर छुपाया जा रहा है।
2.1 चिन्हित जिले जहाँ हिन्दू पलायन तेजी से हुआ है

· मालदा, मुर्शिदाबाद, बीरभूम, उत्तर 24 परगना, बसीरहाट, नादिया, दिनाजपुर, और कूचबिहार — ये वो ज़िले हैं जहाँ हिन्दुओं की आबादी में स्पष्ट गिरावट दर्ज की गई है।

· इन इलाकों में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या तेजी से बढ़ी है। ये घुसपैठिए न केवल जनसांख्यिकी को बदल रहे हैं, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी अस्त-व्यस्त कर रहे हैं।
2.2 कारण – केवल भय नहीं, बल्कि रणनीतिक दमन
a) सामाजिक असुरक्षा:

· हिन्दू परिवारों को बार-बार धमकाया जाना, उनकी दुकानों का बहिष्कार, त्योहारों पर रोक, मवेशियों की चोरी, मंदिरों पर हमले – यह सब उन्हें मानसिक और सामाजिक रूप से तोड़ता है।
b) राजनीतिक धमकी:

· जो हिन्दू भाजपा या अन्य राष्ट्रवादी संगठनों का समर्थन करते हैं, उन्हें "शत्रु" मानकर टारगेट किया जाता है।

· पंचायत चुनावों में बड़ी संख्या में हिन्दू उम्मीदवारों को या तो नामांकन नहीं करने दिया गया या फिर जान से मार दिया गया।
c) प्रशासनिक संरक्षण की कमी:

· स्थानीय पुलिस अक्सर रिपोर्ट नहीं लिखती। यदि हिन्दू शिकायत करता है तो उल्टा उस पर ही मुकदमा कर दिया जाता है।

· तुष्टिकरण की राजनीति के कारण कुछ समुदायों को खुली छूट मिल जाती है।
d) आर्थिक उत्पीड़न:

· व्यवसायों पर जज़िया जैसे टैक्स लगाना, जबरन चंदा लेना, ज़मीन कब्जा करना – ये सब आम बातें हो गई हैं।
2.3 हिन्दुओं के पलायन के प्रमाण

· 2019 से 2023 के बीच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को 100 से अधिक शिकायतें प्राप्त हुईं, जिनमें हिन्दुओं ने पलायन के कारणों में “सांप्रदायिक असुरक्षा” को प्रमुख बताया।

· गृह मंत्रालय को कई सांसदों द्वारा पत्र लिखा गया जिसमें उत्तर 24 परगना और मालदा में "जनसांख्यिकीय परिवर्तन" की जाँच की माँग की गई।

· कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा किए गए सर्वेक्षणों (जैसे जस्टिस फॉर हिन्दूज, हिंदू हेल्पलाइन, आदि) में यह स्पष्ट हुआ कि प्रभावित परिवारों ने अपने घर बेचकर या छोड़कर अन्यत्र शरण ली।
2.4 परिणाम – न केवल सामाजिक, बल्कि राष्ट्रीय
a) सामाजिक टूटन:

· जहाँ हिन्दू अल्पसंख्यक होते जा रहे हैं, वहाँ शादियों, संस्कारों, मंदिरों की गतिविधियों पर प्रतिबंध, या सामाजिक बहिष्कार जैसी घटनाएँ बढ़ी हैं।
b) शिक्षा व रोजगार पर प्रभाव:

· हिन्दू छात्र और छात्राएं स्कूलों में असुरक्षित महसूस करते हैं। कई मामलों में धार्मिक पहचान छुपाकर शिक्षा लेनी पड़ती है।
c) राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा:

· सीमावर्ती जिलों में जनसांख्यिकी बदलने से राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ पनप रही हैं। राष्ट्र विरोधी नारों, मादक पदार्थों की तस्करी, रोहिंग्या की घुसपैठ, और कट्टरपंथी विचारधारा का विस्तार इसका प्रमाण है।
d) सांस्कृतिक क्षरण:

· एक समय जो क्षेत्र हिन्दू संस्कृति और रचनात्मकता का गढ़ था, वहाँ अब मंदिरों की जगह मदरसे, और मूर्तियों की जगह कट्टर झंडे लहरा रहे हैं।

बंगाल में हिन्दू समाज का पलायन मात्र सामाजिक घटना नहीं, बल्कि यह एक सुनियोजित सांस्कृतिक और धार्मिक नरसंहार (Cultural Genocide) का प्रारूप है। यह इतिहास की सबसे बड़ी विडंबना है कि जिस भूमि पर श्रीचैतन्य, विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ, आज वहां हिन्दू भयभीत होकर अपनी जड़ें छोड़ने को विवश है।
केंद्र सरकार की भूमिका और राष्ट्रपति शासन की संवैधानिक व्यवस्था

जब किसी राज्य में संविधानिक व्यवस्था पूर्णतः ध्वस्त हो जाए, नागरिकों की सुरक्षा खतरे में हो, और राज्य सरकार अपनी बुनियादी जिम्मेदारियाँ निभाने में असफल हो — तो केंद्र सरकार पर यह दायित्व आता है कि वह स्थिति को नियंत्रित करने के लिए उचित संवैधानिक उपाय अपनाए। भारत के संविधान में इस परिप्रेक्ष्य में अनुच्छेद 356 का प्रावधान किया गया है, जिसे आमतौर पर "राष्ट्रपति शासन" कहा जाता है।
3.1 अनुच्छेद 356 – क्या कहता है संविधान?

अनुच्छेद 356 कहता है:

"यदि राष्ट्रपति को यह संतोषजनक प्रतीत होता है कि किसी राज्य की शासन व्यवस्था संविधान के अनुसार नहीं चल रही है, तो वह उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है।"

इसमें दो आवश्यक तत्व हैं:

1. राज्य की संविधानिक व्यवस्था का विफल हो जाना।

2. राष्ट्रपति को इसकी रिपोर्ट राज्यपाल द्वारा प्राप्त होना।
3.2 क्या बंगाल में राष्ट्रपति शासन के लिए परिस्थितियाँ परिपक्व हैं?

यदि हम संविधानिक विफलता के संकेतकों की सूची बनाएं, तो बंगाल में निम्न स्पष्ट दिखाई देते हैं:
a) कानून और व्यवस्था की विफलता:

· लगातार दंगे, हत्याएँ, बलात्कार, अपहरण — और पुलिस की निष्क्रियता।

· राज्य में सांप्रदायिक दंगों की पुनरावृत्ति और उसका राजनीतिक संरक्षण।
b) प्रशासन का पक्षपातपूर्ण व्यवहार:

· अपराधियों का धर्म और राजनीतिक संबंध देखकर कार्यवाही या अनदेखी।

· राष्ट्रवादी संगठनों और विरोधियों पर दमन, जबकि जिहादी ताक़तों को खुली छूट।
c) संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन:

· धार्मिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जीवन की सुरक्षा का अधिकार खतरे में।

· हिन्दू समाज की महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की गरिमा और सुरक्षा का संकट।
d) राज्यपाल की रिपोर्ट:

· बंगाल के कई पूर्व राज्यपाल (जगदीप धनखड़ सहित) ने केंद्र को रिपोर्ट भेजी, जिनमें बंगाल में अराजकता और असंवैधानिक शासन का स्पष्ट विवरण था।
3.3 केंद्र सरकार की अब तक की भूमिका: चुप्पी या रणनीति?
केंद्र सरकार के संभावित कारण:

1. राजनीतिक शिष्टाचार या चुनावी रणनीति?

o बंगाल जैसे बड़े राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने से राजनीतिक घमासान मच सकता है। भाजपा इसे 2026 के चुनावों के लिए मुद्दा बनाना चाहती है।

2. अंतर्राष्ट्रीय छवि की चिंता:

o मानवाधिकार, अल्पसंख्यक उत्पीड़न जैसे आरोपों से बचने के लिए केंद्र अत्यंत सावधानी बरत रहा है।

3. कानूनी अड़चन की संभावना:

o बंगाल सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती है, जैसा कि पहले कई राज्यों में हुआ है।

4. केंद्र-राज्य संबंधों में टकराव टालने की नीति:

o केंद्र शायद राष्ट्रपति शासन को अंतिम विकल्प मान रहा है और टकराव से बच रहा है।
परंतु प्रश्न यह है:

क्या देश की सुरक्षा, नागरिकों की रक्षा और हिन्दू अस्मिता का प्रश्न राजनीतिक "रणनीति" के नीचे दबाया जा सकता है?
केंद्र को यह समझना होगा कि उसकी चुप्पी को जनता "संवेदनहीनता" मान रही है।
3.4 ऐतिहासिक दृष्टांत – कब-कब लगा राष्ट्रपति शासन?

वर्ष        राज्य                                                    कारण
1977    पश्चिम बंगाल                                          कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति
1980    पंजाब                                                    आतंकवाद और असंतुलन
1992    उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान            बाबरी विध्वंस के बाद
2005    बिहार                                                    संवैधानिक मशीनरी का पतन

इन सभी उदाहरणों में स्थिति बंगाल से कम या समान थी। तो फिर बंगाल क्यों अपवाद है?
3.5 विपक्ष और बुद्धिजीवियों की दोहरी सोच

· यदि किसी भाजपा शासित राज्य में छोटी घटना हो जाए तो सेक्युलर वर्ग राष्ट्रपति शासन की माँग करने लगता है।

· परंतु बंगाल जैसे राज्य में, जहाँ संवैधानिक मूल्यों का मखौल उड़ रहा है, वहाँ “लोकतंत्र खतरे में है” जैसे जुमले बोलने वाले मौन हैं।

बंगाल की वर्तमान स्थिति अनुच्छेद 356 के पूर्णतया अनुरूप है। यदि यहाँ भी राष्ट्रपति शासन लागू न हो, तो संविधान की भावना और पीड़ितों के मौलिक अधिकार दोनों को कुचला जा रहा है। केंद्र सरकार को अब निर्णय लेना ही होगा — अन्यथा जनता स्वयं विकल्प तलाशेगी।
भारतीय जन क्रांति दल की दृष्टि और कार्यनीति

जब किसी समाज की अस्मिता, सुरक्षा और संस्कृति पर संकट आता है और सत्ताधारी तंत्र मौन या पक्षपाती हो जाए, तब इतिहास गवाह है कि परिवर्तन की लहरें जनता के बीच से उठती हैं। भारतीय जन क्रांति दल (Demo) का जन्म भी इसी संकल्प के साथ हुआ — कि राष्ट्रवाद, धर्मनिष्ठा, और सामाजिक न्याय की रक्षा के लिए एक निर्भीक आवाज बने।
4.1 पार्टी की विचारधारा: राष्ट्र सर्वोपरि

भारतीय जन क्रांति दल की वैचारिक रीढ़ निम्न तीन स्तंभों पर टिकी है:

1. राष्ट्रवाद: भारत की एकता, अखंडता, और सांस्कृतिक गौरव का संरक्षण।

2. धर्म-संरक्षण: सनातन धर्म की परंपराओं, मान्यताओं, और मूल्यों की रक्षा।

3. सामाजिक न्याय: पीड़ित, उपेक्षित और उत्पीड़ित वर्गों को न्याय दिलाना।

बंगाल में जो कुछ हो रहा है — वह केवल हिन्दुओं पर अत्याचार नहीं, बल्कि भारत की आत्मा पर आघात है। इस परिस्थिति में हमारी पार्टी ने स्पष्ट और निर्भीक रुख अपनाया है।
4.2 बंगाल की स्थिति पर पार्टी का स्टैंड

✅ "हिन्दू नरसंहार नहीं सहेगा भारत" — हमारा मुख्य नारा।
✅ बंगाल को राष्ट्रीय आपात स्थिति घोषित करने की माँग।
✅ केंद्र सरकार से राष्ट्रपति शासन की खुली अपील।
✅ पीड़ित हिन्दू परिवारों को कानूनी, सामाजिक और आर्थिक सहायता।

4.3 धरातल पर किए गए प्रयास
📌 जनजागरण अभियान:

· 2023-24 में पार्टी ने पश्चिम बंगाल, झारखंड, और असम के सीमावर्ती जिलों में "हिन्दू जागो, राष्ट्र बचाओ" यात्रा चलाई।

· जनसभाओं, पदयात्राओं और स्थानीय संवाद के माध्यम से जनता को वास्तविकता से अवगत कराया गया।
📌 पीड़ित परिवारों से संवाद:

· उत्तर 24 परगना, मालदा और बीरभूम में सैकड़ों पीड़ित हिन्दू परिवारों से सीधे मिलकर दस्तावेज़ और साक्ष्य इकट्ठा किए गए।

· कानूनी सहायता हेतु "हिन्दू न्याय हेल्पलाइन" शुरू की गई।
📌 मीडिया और सोशल मीडिया पर मोर्चा:

· राज्य सरकार द्वारा दबाए गए मामलों को उजागर करने के लिए सोशल मीडिया अभियान चलाए गए।

· #BengalHinduLivesMatter, #SaveBengalHindus जैसे हैशटैग को ट्रेंड कराया।
📌 केंद्र सरकार और राष्ट्रपति को ज्ञापन:

· प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और राष्ट्रपति को हजारों नागरिकों के हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन सौंपे गए।

· इन ज्ञापनों में राज्यपाल की रिपोर्टों को सार्वजनिक करने की माँग और अनुच्छेद 356 लागू करने का आग्रह था।
4.4 आगे की रणनीति
🔹 राष्ट्रव्यापी हस्ताक्षर अभियान:

· 1 करोड़ नागरिकों से समर्थन प्राप्त कर एकजुटता प्रदर्शित करना।
🔹 संसद सत्र के दौरान विरोध प्रदर्शन:

· दिल्ली में रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक "राष्ट्रीय चेतना रैली" की योजना।
🔹 कानूनी मोर्चा:

· बंगाल में हो रहे हिन्दू पलायन और अत्याचार पर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की जाएगी।
🔹 अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर आवाज:

· भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के नाम पर जो दोहरा रवैया अपनाया जाता है, उसे उजागर करने के लिए यूएन और एमनेस्टी जैसी संस्थाओं को सच्चाई से अवगत कराया जाएगा।

भारतीय जन क्रांति दल मात्र राजनीतिक दल नहीं, बल्कि एक धर्म, राष्ट्र और न्याय के लिए संकल्पित आंदोलन है। जहाँ सत्ता पक्ष और तथाकथित विपक्ष दोनों चुप हैं, वहाँ हमारी पार्टी हिन्दू समाज की पीड़ा को संसद, सड़क और न्यायपालिका तक पहुँचा रही है। बंगाल की लड़ाई अब केवल एक राज्य की नहीं — यह भारत की आत्मा की रक्षा की लड़ाई बन चुकी है।
मीडिया, बुद्धिजीवी वर्ग और समाज की चुप्पी

जब किसी राज्य में बहुसंख्यक समाज असुरक्षित महसूस करे, जब बच्चियों की इज़्ज़त को सरेआम रौंदा जाए, जब घर-परिवार जला दिए जाएँ, और जब न्याय की कोई उम्मीद न बचे — तब यदि मीडिया, बुद्धिजीवी वर्ग और समाज मौन रह जाए, तो यह मौन केवल कायरता नहीं, बल्कि सांप्रदायिक और वैचारिक पक्षपात का प्रमाण बन जाता है।
5.1 मीडिया की भूमिका — “सेलेक्टिव एक्टिविज़्म” का चेहरा
a) बंगाल की जमीनी हकीकत मीडिया में क्यों नहीं दिखती?

· देशभर में कहीं एक छोटी घटना घट जाए तो तथाकथित "राष्ट्रीय मीडिया" उस पर 24x7 बहस करता है।

· लेकिन बंगाल में हिन्दुओं की हत्याएँ, बलात्कार, पलायन, और मंदिर तोड़े जाने की खबरें या तो आती ही नहीं या बिना तथ्यों के दबा दी जाती हैं।
b) उदाहरण:

· रामनवमी पर हिंसा को लेकर मीडिया ने “दोनों पक्षों में झड़प” बताया, जबकि सैकड़ों वीडियो में एकतरफा पत्थरबाज़ी और तोड़फोड़ स्पष्ट दिख रही थी।

· नदिया की किशोरी बलात्कार कांड — अधिकांश राष्ट्रीय चैनलों ने उसे "नाबालिग प्रेम प्रसंग" कह कर ढक दिया।
c) “सेक्युलर” मीडिया की रणनीति:

· यदि पीड़ित हिन्दू है और अपराधी विशेष समुदाय से है — तो "तथ्यों की पुष्टि" का बहाना।

· यदि पीड़ित अल्पसंख्यक है — तो "अल्पसंख्यकों पर अत्याचार" के नाम पर तत्काल हेडलाइन।
5.2 बुद्धिजीवी वर्ग — दोहरे मापदंड का चरम
a) "अवार्ड वापसी गैंग" की चुप्पी:

· जो लोग "लोकतंत्र खतरे में है" कहकर अवॉर्ड लौटाते हैं, उन्होंने बंगाल के मुद्दों पर एक शब्द नहीं कहा।

· न कोई मार्च, न कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस, न कोई विरोध।
b) विश्वविद्यालयों के मौन:

· JNU, Jadavpur जैसे विश्वविद्यालय, जो हर वैश्विक मुद्दे पर 'प्रेस नोट' जारी करते हैं, बंगाल में हिन्दू उत्पीड़न पर मौन हैं।
c) “ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट” कहाँ हैं?

· कथित मानवाधिकार कार्यकर्ता केवल कुछ चुने मुद्दों पर सक्रिय होते हैं। बंगाल में उनकी भूमिका न के बराबर रही है।
5.3 बॉलीवुड और तथाकथित सेलिब्रिटी समाज का "नैतिक पक्षपात"

· जब कठुआ जैसी घटना हुई, तो फिल्म इंडस्ट्री ने "मैं शर्मिंदा हूँ" जैसे कैंपेन चलाए।

· लेकिन बंगाल की बच्चियों पर हो रहे अत्याचार पर बॉलीवुड के होंठ सिल जाते हैं।

· क्या पीड़िता की जाति, धर्म और राज्य देखकर संवेदना तय होती है?
5.4 आम समाज की चुप्पी — भय या उदासीनता?

· बड़ी संख्या में आम नागरिक बंगाल की घटनाओं से परिचित ही नहीं हैं। मीडिया उन्हें अंधकार में रखता है।

· जो लोग जानते भी हैं, वे "यह तो राजनीति है" कहकर मुंह मोड़ लेते हैं।

यह चुप्पी उस दिन तोड़ेगी जब पीड़ा आपके अपने दरवाज़े पर आएगी।

मीडिया, बुद्धिजीवी वर्ग और सेलिब्रिटी समाज — ये सब भारतीय जनमत को दिशा देने वाले स्तंभ हैं। पर जब ये पक्षपाती हो जाते हैं, तब जनमत गुमराह हो जाता है। बंगाल में हिन्दू समाज की पीड़ा को नजरअंदाज़ करना केवल अन्याय नहीं, बल्कि राष्ट्रद्रोह के समान है।
समाधान की दिशा – नीति, आंदोलन और जनचेतना

बंगाल की वर्तमान स्थिति केवल दुखद नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना को झकझोरने वाली है। यदि यह स्थिति बनी रही, तो यह मॉडल अन्य राज्यों में भी दोहराया जा सकता है। अतः अब केवल चिंता करना पर्याप्त नहीं है — समाधान ढूंढ़ना, उसे लागू करना और जन-चेतना जगाना अपरिहार्य है।

इस भाग में हम इस संकट से बाहर निकलने के तीन स्तरीय समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं:

1. नीतिगत (Policy Level)

2. जनांदोलन आधारित (Mass Mobilization)

3. सामाजिक जागरूकता (Social Reawakening)
6.1 नीति आधारित समाधान
a) अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन लागू किया जाए:

· बंगाल में राज्य सरकार संविधान के अनुसार शासन चलाने में विफल रही है।

· केंद्र सरकार को यह भय त्यागना होगा कि राष्ट्रपति शासन लगाने से "राजनीतिक विरोध" होगा।

· राष्ट्र की अखंडता और नागरिकों की रक्षा किसी भी राजनीतिक समीकरण से बड़ी होनी चाहिए।
b) सीमावर्ती जिलों में एनआईए, बीएसएफ और केंद्रीय बलों की स्थायी तैनाती:

· घुसपैठ, तस्करी और कट्टरपंथी नेटवर्क को खत्म करने के लिए केंद्रीय एजेंसियों को सीधी कार्रवाई का अधिकार देना आवश्यक है।
c) राष्ट्र विरोधी संगठनों पर प्रतिबंध:

· PFI जैसे संगठनों पर प्रतिबंध के बाद भी उनके छद्म रूपों को बंगाल में संरक्षण प्राप्त है।

· उनके खिलाफ कठोर आर्थिक, कानूनी और तकनीकी कार्रवाई हो।
d) दंगा पीड़ित हिन्दू परिवारों के लिए पुनर्वास योजना:

· केंद्र सरकार को पीड़ित हिन्दू परिवारों के लिए "विशेष सुरक्षा और पुनर्वास योजना" लागू करनी चाहिए — जिसमें राहत, पुनर्निर्माण और कानूनी मदद सुनिश्चित हो।
6.2 जनांदोलन आधारित समाधान
a) राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान:

· बंगाल की वास्तविकता को देश के कोने-कोने तक पहुँचाने के लिए रथ यात्राएँ, जन सभाएँ, सोशल मीडिया कैम्पेन चलाए जाएँ।
b) हर जिले में “बंगाल के लिए सत्याग्रह”:

· गांधीवादी तरीकों से शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर पूरे देश का ध्यान इस ओर खींचा जाए।
c) हिन्दू संगठन एक मंच पर आएँ:

· जाति, दल और क्षेत्र से ऊपर उठकर हिन्दू समाज को एकजुट होना होगा — क्योंकि यह लड़ाई अस्तित्व की है।
6.3 सामाजिक जागरूकता आधारित समाधान
a) हिन्दू युवाओं का वैचारिक शिक्षण:

· गुरुकुल, वेद विद्यालय, संस्कार केंद्रों के माध्यम से भावी पीढ़ी को धर्म, राष्ट्र और संस्कृति की रक्षा के लिए तैयार किया जाए।
b) महिला सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता:

· हिन्दू बहन-बेटियों के लिए आत्मरक्षा प्रशिक्षण, हेल्पलाइन, और कानूनी सहायता समूह बनाए जाएँ।
c) ग्रामीण स्तर पर “हिन्दू सुरक्षा समिति”:

· गाँव-गाँव, मोहल्ले-मोहल्ले में लोकल नेटवर्किंग और सतर्कता दल बनाए जाएँ जो संदिग्ध गतिविधियों की निगरानी करें।
d) अपनी संस्कृति में गर्व:

· हिन्दू समाज को अपनी भाषा, परंपराओं, मंदिरों और त्योहारों को फिर से सार्वजनिक रूप से मनाने का साहस दिखाना होगा।

समाधान केवल सत्ता परिवर्तन नहीं है — चेतना परिवर्तन है।
बंगाल में हिन्दू समाज के साथ जो हो रहा है, वह सम्पूर्ण भारत के लिए चेतावनी है।
यदि अब भी समाज जागा नहीं, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें क्षमा नहीं करेंगी।
"यह समय भावनाओं का नहीं, क्रियाशीलता का है।"

बंगाल की पीड़ा, भारत की चेतना का प्रश्न

पश्चिम बंगाल की वर्तमान स्थिति कोई सामान्य कानून व्यवस्था का संकट नहीं है। यह एक वैचारिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय आपात स्थिति है। यहाँ न केवल हिन्दू समाज पर शारीरिक और मानसिक आक्रमण हो रहा है, बल्कि भारत की आत्मा — उसकी सनातन संस्कृति, धार्मिक स्वतंत्रता और राष्ट्रीय एकता — को गहराई से चोट पहुँचाई जा रही है।

1. यह केवल बंगाल का प्रश्न नहीं
बंगाल में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार, उनके पलायन, बहन-बेटियों के साथ दुराचार, और मंदिरों की दुर्दशा — ये केवल एक राज्य की घटनाएँ नहीं हैं।
यह उस सांस्कृतिक वर्चस्व की योजना का हिस्सा है, जिसका लक्ष्य बहुसंख्यक समाज को आत्मविहीन, दिशाहीन और असहाय बना देना है।

2. केंद्र की चुप्पी और जनता का क्रोध
जब राज्य सरकार संविधान के दायरे से बाहर जाकर काम करती है और पीड़ितों की पुकार अनसुनी होती है, तब केंद्र सरकार की निष्क्रियता दोष से कम नहीं।
यदि केंद्र राजनीतिक समीकरणों या अंतर्राष्ट्रीय छवि के भय से कार्रवाई नहीं करता, तो जनता में आक्रोश जन्म लेगा।
और वह आक्रोश केवल शब्दों में नहीं रहेगा — वह आंदोलन बनेगा, क्रांति बनेगा।

3. भारतीय जन क्रांति दल का संदेश
हमारी पार्टी इस पूरे घटनाक्रम को केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्र-रक्षा और धर्म-संरक्षण का युद्ध मानती है।
हम यह स्पष्ट करते हैं — कि जहाँ संसद मौन है, मीडिया पक्षपाती है, और सत्ता सशंकित है — वहाँ जनता को स्वयं नेतृत्व, संघर्ष और जागरूकता का मार्ग अपनाना होगा।

4. अब क्या करना है?

✅ समझना होगा कि यदि आज बंगाल में हिन्दू असुरक्षित हैं, तो कल यह आग पूरे भारत में फैल सकती है।
✅ उठना होगा, बोलना होगा, और संगठित होकर खड़ा होना होगा — संविधान, संस्कृति और न्याय की रक्षा के लिए।
✅ यह संघर्ष किसी विशेष दल या नेता का नहीं — यह हर भारतवासी का धर्म और कर्तव्य है।


अंतिम पंक्तियाँ – 
“बंगाल की भूमि जो रामकृष्ण, विवेकानंद, सुभाष और रविन्द्र की थी —
आज वहाँ हिन्दू समाज भय में जी रहा है।
यह केवल दुखद नहीं, अपमानजनक भी है।
हम न तो इस अपमान को स्वीकार करेंगे, और न ही अपने राष्ट्र को अंधकार में जाने देंगे।
संघर्ष होगा, क्रांति होगी — और एक नया भारत, सुरक्षित भारत, सनातन भारत बनेगा।”

लेखक डॉ. राकेश दत्त मिश्र , भारतीय जन क्रांति दल के राष्ट्रीय महासचिव और समाजिक कार्यकर्ता एवं दिव्य रश्मि के सम्पादक है |
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ