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मिट्टी का माधो

मिट्टी का माधो

प्रकाश कुंवर
उमाशंकर जी गाँव के एक मध्यमवर्गीय किसान हैं। आज उनकी एकलौती बेटी कुसुम की शादी है। जैसा कि गाँव और हमारे समाज में प्रचलित है कि बेटी की शादी हमेशा अपने से उपर आर्थिक स्थिति वाले घर में ही करनी चाहिए जिससे कि ससुराल में लड़की सुखी जीवन व्यतीत कर सके।। उसी मान्यता के अनुसार उमाशंकर जी ने भी अपनी लड़की कुसुम की शादी एक अपने से संपन्न एवं शिक्षित परिवार में तय कर रखी है।लेकिन संपन्न एवं शिक्षित परिवार होते हुए भी लड़का के परिवार वाले काफी लालची हैं और शादी में अच्छी खासी रकम एवं ऐशों आराम के अनेक सामान उमाशंकर जी से दहेज के रूप में मांग रखी है । लड़का भी शिक्षित है एवं नौकरी में लगा हुआ है । परंतु वह तिलक दहेज के मामले में अपने अभिभावकों का ही पक्षधर है।। हांलाकि आज ही कुसुम के शादी का दिन है और बारात गाँव के नजदीक तक आ पहुंची है, लेकिन कुसुम के पिता शादी के शर्तों के अनुसार दहेज अभी तक नहीं चुका पाये हैं और इसलिए वे काफी चिंतित हैं । फिर भी वे परिवार के सदस्यों और गाँव वालोँ के साथ बारात की अगवानी के लिए अपने दरवाजे पर खड़े हैं। बैंड बाजा और नाच गान करती हुई बारात दरवाजे लगती है और समयानुसार लड़के को शादी के मंडप में लाया जाता है। लड़का लड़की दोनों शादी मंडप में बैठे हैं और पुरोहित मंत्रोच्चार कर रहे हैं। इसी बीच लड़के के पिता अपने नगदी दहेज की मांग करते हैं। उमाशंकर जी द्वारा देने में इस समय असमर्थता जताने पर लड़के के पिता भड़क उठते हैं और लड़के को मंडप से उठकर बाहर निकल आने को कहते हैं। लड़का के मंडप से बाहर निकलने पर उमाशंकर जी उसके पिता के पैर पर अपनी पगड़ी रखकर मिन्नत करते हैं कि उनकी इज्जत रखी जाये और लड़की का इस प्रकार दिल न तोड़ा जाए। लेकिन उनके मिन्नत का कोई असर नहीं पड़ता है और लड़का समेत सब लोग बारात वापस ले चलने के लिए बाहर आ जाते हैं। लड़की कुसुम भी स्नातक पास है और एक सरकारी कार्यालय में कार्यरत है। वह इस प्रकार दान दहेज के लिए शादी के मंडप में अपनी बेइज्जती को सहन नहीं कर पा रही है।
इस बारात में लड़के के गाँव के कुछ नवयुवक आये हुए हैं जिनमें एक लड़का राजन भी है, जो कभी कुसुम को प्यार करता था और एक समय उसने घर से भाग कर शादी कर लेने के लिए कुसुम को उकसाया था, क्योंकि कुसुम कालेज में उसकी सहपाठी थी। और कुसुम के पिता उसके साथ अपनी लड़की का शादी कुछ कारणों से करने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन इस समय वह भी मौन होकर तमाशा देख रहा था और कुसुम के पिता का इज्जत उतरते हुए देखकर मजा ले रहा था। वह इस समय आगे बढ़कर कुसुम का हाथ नहीं थाम सका, क्योंकि उसका प्यार झूठा और स्वार्थी था।
इस बारात में बारातियों के साथ एक और लड़का शामिल था जो लड़की के ही जाति बिरादरी का था और जिसका नाम माधव था और गांव के लोग उसे बुद्दू व्यक्ति समझते थे इसलिए उन लोगों ने उसका उपनाम मिट्टी का माधो रख दिया था। वास्तव में माधव एक पढ़ा लिखा युवक था और आज कल के दुनियावी फरबों से अपने को अलग थलग रखता था। उसने एक निजी फार्म की नौकरी इस लिए छोड़ दी थी क्योंकि वहाँ उससे अनेक प्रकार के गलत काम करने के लिए कहा जाता था और माधव वो सब कर नहीं पाता था। इस हरकत के बाद गाँव वाले उसे और भी मिट्टी का माधो मानने लगे थे। अब वह एक दूसरे जगह इज्जत और अपने शर्तों पर कम वेतन में ही काम करता था।
पर इस सबका परवाह किये बिना वह शांत रहकर अपना काम किये जा रहा था। उसे अपने गाँव, समाज और देश की चिंता हमेशा रहती थी। ले दे कर माधव केवल मिट्टी का माधो नहीं था बल्कि एक स्वाभीमानी लड़का था। उसके घर वाले भी उसके काम और सोच में अड़ंगा नहीं डालते थे। वह अभी तक कुंवारा ही था। उसने जब कुसुम की शादी में लड़के पक्ष के लोगों और खुद लड़के के व्यवहार को देखा तो उससे सहन नहीं हो पाया। वह कुसुम के पिता उमाशंकर जी की हालत को देखकर मायूस और हतप्रभ था। जब वह इस समय कुसुम को मंडप में सिसकियां लेते हुए देखता है तो उससे सहन नहीं हो पाया। सजा सजाया शादी का मंडप अब उजड़ने को तैयार है। ऐसी अवस्था में माधव आगे बढ़ कर कुसुम का हाथ थामने को तैयार है। वह उमाशंकर जी की पगड़ी दहेज के लिए नहीं उछलने देगा। वह पूरे गाँव और समाज के सामने कुसुम का हाथ थामने को तैयार है यदि कुसुम और उसके पिता उमाशंकर जी राजी हो।
इस घड़ी में उमाशंकर जी के लिए माधव एक दुल्हा नहीं बल्कि देवदूत बनकर उसकी लड़की का हाथ थामने आया है। एक अनजान फरिश्ता उनकी लड़की का हाथ थामने एवं उनकी प्रतिष्ठा बचाने के लिए किसी की परवाह किये बिना उनके सामने शादी के मंडप में खड़ा है एवं उनकी तथा उनकी लड़की कुसुम की हामी का इंतजार कर रहा है। कुसुम माधव के इस व्यहार से काफी प्रभावित हुई और उसने माधव के साथ शादी के लिए हामी भर दी। पिता उमाशंकर जी तथा गाँव वालों के सहमति से उसी मंडप में, जिससे दान दहेज की राशि नहीं मिलने के कारण एक दुल्हा चंद घंटे पहले बिना शादी किये उठ कर तथा अपनी बारात लेकर वापस चला गया है, एक दुसरे अपरिचित दुल्हे माधव के साथ बिना किसी मांग और बिना किसी दान दहेज के कुसुम की शादी खुशी खुशी समपन्न होती है।
शादी के बाद जब माधव और कुसुम पति पत्नी के रूप में अपने गाँव एवं अपने घर आते हैं और शादी की सारी वृतान्त अपने अभिभावकों को बताते हैं तो वे माधव के निर्णय से काफी प्रसन्न होते हैं और अब घर तथा गाँव वाले उसकी बुद्धि और निर्णय की सराहना करते हुए यह मानते हैं कि माधव केवल मिट्टी का माधो नहीं है, बल्कि वह एक सीधा साधा दिखने वाला सुलझा हुआ इंसान है।
अब माधव और कुसुम दोनों ही अपना अपना काम करने लगे हैं और दामपत्य जीवन में परिवार के साथ खुशहाल हैं। उधर कुसुम के पिता उमाशंकर जी भी अपनी लड़की के ससुराल में खुशहाल जीवन से काफी खुशी हैं। जय 
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