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"देह व्यापार : समाज और सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती"

"देह व्यापार : समाज और सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती"

✍🏻 लेखक: संतोष कुमार ओझा

भारत, जहाँ नारी को देवी मानकर पूजा जाता है, जहाँ संस्कृति, आध्यात्मिकता और नैतिकता का उच्च स्थान है, वहाँ आज देह व्यापार जैसी कुप्रथा का जाल दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है। यह न केवल हमारी सामाजिक संरचना को भीतर से खोखला कर रहा है, बल्कि हमारे युवाओं के भविष्य, नारी गरिमा और मानवता की नींव पर भी प्रश्नचिह्न लगा रहा है। यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे जितना भी अनदेखा किया जाए, वह समाज के सामने एक नंगी सच्चाई की तरह खड़ी रहती है।

पश्चिम बंगाल, मुंबई, दिल्ली, बैंगलोर जैसे महानगर तो पहले से ही इसके शिकार थे, लेकिन अब यह बीमारी छोटे शहरों, कस्बों और यहाँ तक कि ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँच चुकी है। इसके पीछे केवल आर्थिक कारण ही नहीं, बल्कि एक समग्र सामाजिक और प्रशासनिक असफलता छिपी हुई है।

देह व्यापार का इतिहास और वर्तमान स्वरूप


देह व्यापार कोई नया संकट नहीं है। इतिहास में यह समस्या प्राचीन काल से ही मौजूद रही है। कभी यह राजदरबारों के मनोरंजन का साधन थी, तो कभी आर्थिक तंगी से जूझती महिलाओं की विवशता। किंतु आज इसका स्वरूप पूरी तरह से संगठित अपराध में परिवर्तित हो चुका है।

आज देह व्यापार के नाम पर एक पूरा रैकेट चलता है — जिसमें दलाल, होटल मालिक, पुलिस प्रशासन के कुछ भ्रष्ट तत्व, सोशल मीडिया के जरिए चलने वाले नेटवर्क और मानव तस्कर शामिल हैं। यह सिर्फ देह का सौदा नहीं, बल्कि इंसानियत की हत्या है।

देह व्यापार के मूल कारण


देह व्यापार की जड़ें गहराई से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ढांचे में समाई हुई हैं। इसके पीछे कई जटिल कारण हैं जो एक दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं:
1. गरीबी और बेरोजगारी

भारत जैसे देश में आज भी करोड़ों लोग दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहे हैं। ऐसे में गरीब घर की लड़कियों को बहला-फुसलाकर या जबरन इस गंदे धंधे में धकेल दिया जाता है। उनके परिवार की आर्थिक विवशता और सामाजिक असुरक्षा उन्हें इस दलदल में फँसा देती है। कई बार माता-पिता ही मजबूरीवश अपनी बेटियों को बेच देते हैं, जो हमारी सामाजिक संवेदनहीनता का चरम उदाहरण है।
2. अशिक्षा और जागरूकता की कमी

शिक्षा केवल रोजगार नहीं, बल्कि सही और गलत की पहचान का माध्यम है। जब बच्चियाँ कम उम्र में स्कूल छोड़ देती हैं या शिक्षा से वंचित रहती हैं, तब उन्हें आसानी से बहलाया और फंसाया जा सकता है। सोशल मीडिया पर झूठे प्रेम संबंधों के नाम पर हजारों बच्चियाँ फँसाई जाती हैं और फिर उन्हें बेचा जाता है।
3. सरकारी तंत्र की उदासीनता

अधिकतर मामलों में स्थानीय प्रशासन, पुलिस और राजनीतिक संरक्षण में यह धंधा फल-फूल रहा है। पुलिस को जानकारी होने के बावजूद कार्रवाई नहीं की जाती या दलालों से सांठगांठ कर ली जाती है। कई बार पीड़िता ही दोषी बना दी जाती है और उसके पुनर्वास की जगह उसे बार-बार उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है।
4. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया का दुरुपयोग

आज के डिजिटल युग में देह व्यापार इंटरनेट के जरिए संचालित किया जा रहा है। व्हाट्सएप ग्रुप, इंस्टाग्राम, फेसबुक, डेटिंग ऐप्स और डार्क वेब पर इस कारोबार का अड्डा बन चुका है। ये पोर्टल्स युवा लड़कियों को नौकरी, मॉडलिंग, अभिनय या विवाह का झांसा देकर फँसाते हैं और फिर उन्हें बंधुआ बना देते हैं।
बंगाल – देह व्यापार का नया केंद्र

पश्चिम बंगाल, विशेषतः उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, मुर्शिदाबाद, मालदा और कोलकाता के कई क्षेत्रों में मानव तस्करी और बाल वेश्यावृत्ति की घटनाएं अत्यधिक बढ़ चुकी हैं। बांग्लादेश से सटे सीमावर्ती इलाके इस कार्य के लिए अत्यंत संवेदनशील हो गए हैं। यहाँ से लड़कियों को दिल्ली, मुंबई और अन्य शहरों में सप्लाई किया जाता है। कई मामलों में इन्हें बांग्लादेश, नेपाल, थाईलैंड और खाड़ी देशों में भी भेजा जाता है।
मानव तस्करी: देह व्यापार की रीढ़

देह व्यापार का सबसे खतरनाक पक्ष है — मानव तस्करी। मानव तस्करी आज विश्व में सबसे तेज़ी से बढ़ते अपराधों में से एक है। इसमें बच्चों, महिलाओं और कभी-कभी पुरुषों को भी लालच, बल प्रयोग या धोखाधड़ी के जरिए अवैध कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 16,000 लड़कियाँ गायब होती हैं, जिनमें से एक बड़ी संख्या देह व्यापार की शिकार बनती है।

पीड़िताओं की दशा और पुनर्वास की आवश्यकता


जो लड़कियाँ एक बार इस दलदल में फँस जाती हैं, वे या तो वहाँ से निकल नहीं पातीं या फिर इतनी मानसिक और शारीरिक रूप से टूट जाती हैं कि उन्हें सामान्य जीवन जीने का साहस नहीं होता। उनमें से कई को इस धंधे में जन्म के बाद ही जबरन डाल दिया जाता है। वे इसे ‘नैतिक अपराध’ नहीं, बल्कि जीविका का एकमात्र साधन मानने लगती हैं।

इन बच्चियों को सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि वे पीड़िता हैं, अपराधी नहीं। इनके लिए ठोस पुनर्वास नीति, काउंसलिंग, कौशल विकास और शिक्षा की व्यवस्था अनिवार्य है।
सरकार और समाज की भूमिका

इस विकराल समस्या से निपटने के लिए केवल कानून ही नहीं, बल्कि समाज और सरकार के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है:
1. कानूनी और प्रशासनिक उपाय


  • NIA जैसी केंद्रीय एजेंसी को मानव तस्करी और देह व्यापार से जुड़े मामलों की जांच सौंपनी चाहिए।
  • बंगाल और अन्य संवेदनशील राज्यों में विशेष छापेमारी अभियान चलाए जाएँ।
  • बाल वेश्यावृत्ति और ऑनलाइन पोर्टल्स के जरिए संचालित रैकेट्स पर सख्त नियंत्रण हो।
  • अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम (PITA) को और सशक्त बनाया जाए।

2. पुनर्वास और शिक्षा


पीड़िताओं के लिए आश्रय गृह, मानसिक स्वास्थ्य सहायता, शिक्षा और स्वरोजगार की व्यवस्था हो।


पुनर्वास केंद्रों की संख्या बढ़ाई जाए और उन्हें निजी संगठनों के भरोसे न छोड़कर सरकारी निगरानी में लाया जाए।
3. जन-जागरूकता अभियान


समाज को शिक्षित और संवेदनशील बनाना जरूरी है कि वह पीड़िता को तिरस्कार की दृष्टि से न देखे।


स्कूल और कॉलेजों में यौन शिक्षा, साइबर जागरूकता और आत्मरक्षा के प्रशिक्षण अनिवार्य किए जाएँ।


मीडिया को जिम्मेदारी के साथ इस मुद्दे को उठाना चाहिए, न कि सनसनी फैलाने के लिए।
कुछ दिल दहला देने वाले आँकड़े और घटनाएँ


दिल्ली: एक 14 वर्ष की लड़की को उत्तर प्रदेश से अगवा कर देह व्यापार के लिए कोठे पर बेचा गया। वह 8 महीने तक बंधक रही।


बंगाल: किशोरी को फेसबुक पर प्रेम जाल में फँसाकर बांग्लादेश भेज दिया गया।


मुंबई: एक हाई-प्रोफाइल कॉल गर्ल रैकेट में कई बॉलीवुड अभिनेत्रियाँ शामिल पाई गईं।
निष्कर्ष: यह केवल कानून की नहीं, नैतिकता की भी लड़ाई है

देह व्यापार पर अंकुश लगाने के लिए जितने कानून जरूरी हैं, उतनी ही जरूरी है सामाजिक चेतना, नैतिक शिक्षा और प्रशासनिक ईमानदारी। जब तक समाज यह नहीं समझेगा कि यह केवल “उन लड़कियों” की समस्या नहीं, बल्कि हमारे सभ्य समाज का विघटन है — तब तक कोई परिवर्तन संभव नहीं।

जो लड़कियाँ इस दलदल में फँसी हैं, वे हमारी बहनें और बेटियाँ हैं। हमें उनके लिए आवाज़ उठानी होगी, उन्हें अपनाना होगा और उनके पुनर्वास के लिए ठोस रास्ते तैयार करने होंगे।

सरकार से स्पष्ट अपील

  • मानव तस्करी के विरुद्ध विशेष फास्ट ट्रैक न्यायालय बनाए जाएँ।
  • ऑनलाइन रैकेट्स को नियंत्रित करने के लिए साइबर शाखा को उच्च तकनीक उपलब्ध कराई जाए।
  • सीमा क्षेत्रों पर सतर्कता और निगरानी के लिए विशेष बल तैनात किए जाएँ।
  • NGOs और सामाजिक कार्यकर्ताओं को अधिक सक्रिय भूमिका दी जाए।
  • पीड़िताओं के पुनर्वास के लिए एक अलग मंत्रालय या टास्क फोर्स गठित की जाए।

अंतिम विचार:


“एक सभ्य समाज की पहचान उसकी सबसे कमजोर कड़ी से होती है, और देह व्यापार की शिकार महिलाएँ हमारे समाज की सबसे उपेक्षित कड़ी हैं।”

यदि हम आज नहीं जागे, तो कल हमारे अपने घर की बेटियाँ भी असुरक्षित होंगी। यह केवल कानून की नहीं, बल्कि अंतरात्मा की लड़ाई है।

जय भारत, जय भारतीय।
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