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संस्कृत फिर से लौटे भारत में

🌿 "संस्कृत फिर से लौटे भारत में" 🌿

लेखक: संतोष कुमार ओझा
संस्कृत जो वाणी थी ऋषियों की,
ज्ञान-गंगा सी बहती थी,
जहाँ वेदों की रचना होती,
वह भूमि कभी न थमती थी।


चन्द्र, सूर्य, नक्षत्रों की भाषा,
गूंजी थी जब गुरुकुल में,
हर शिशु था शास्त्रों का ज्ञाता,
रमता था वह ब्रह्मतत्व में।


फिर क्यों अब यह मौन पड़ी है?
क्यों किताबों में कैद हुई?
जिसने सिखाया आत्मबोध को,
वह शिक्षा क्यों विस्मृत हुई?


हे शासन! सुनो भारत माता की,
जो रोती है अपनी जिह्वा को,
जो कहती थी – "त्वमेव विद्या",
अब पुकारे अपने सन्तान को।


संस्कृत को विद्यालयों में लौटाओ,
श्लोकों से फिर कक्षा भर दो,
ऋग्वेद, गीता, योग-सूत्रों से,बच्चों के मन को धन्य कर दो ।

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