शब्दवीणा के राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में गूँजा प्रकृति और पर्यावरण का स्वर, 15 राज्यों के कवियों ने काव्य के माध्यम से दिया जागरूकता का संदेश

- सैकड़ों साहित्य प्रेमियों ने लिया ऑनलाइन काव्य रसास्वादन, भावविभोर हुए श्रोता
राष्ट्रीय साहित्यिक-सह-सांस्कृतिक संस्था 'शब्दवीणा' के तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में भारत के विभिन्न राज्यों से जुड़े रचनाकारों ने प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण पर अपने सशक्त और भावप्रवण काव्य-पाठ से उपस्थित जनमानस को गहराई तक प्रभावित किया। "आओ पर्यावरण संवारें" विषय पर केंद्रित इस आयोजन में शब्दवीणा की बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, दिल्ली, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात, हरियाणा और पंजाब प्रदेश समितियों के प्रतिनिधि कवियों ने भाग लिया।
कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत हरियाणा प्रदेश सचिव श्रीमती सरोज कुमार द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुई, जिसके उपरांत संस्था की संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी ने शब्दवीणा का स्वागत गीत प्रस्तुत कर समारोह का उद्घाटन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर्नाटक प्रदेश साहित्य मंत्री वरिष्ठ कवि निगम राज ने की, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय सचिव महावीर सिंह वीर एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में राष्ट्रीय संयोजक एवं उपाध्यक्ष कौशल किशोर त्रिवेदी मंचासीन रहे।
इस कवि सम्मेलन की विशेषता रही कि इसमें प्रस्तुत हर रचना में प्रकृति के प्रति चिंता, पीड़ा और उसके संरक्षण का आग्रह मुखर था। डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी की रचना "खतरे में है धरती अपनी, आओ पर्यावरण संवारें। थोड़ी देर शांत हो बैठें, सोचें, समझें और विचारें..." ने सबको आत्ममंथन के लिए प्रेरित किया। उन्होंने साहित्यकारों की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि साहित्य सामाजिक चेतना का संवाहक है और पर्यावरण के प्रति जनजागरण में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
महावीर सिंह वीर ने अपनी दमदार प्रस्तुति में वृक्षों को शापित देवता की संज्ञा देते हुए मुक्तक पढ़ा –
"हमें जो ज़िंदगी देने ज़मीं पे आए हैं,
उन्हीं पे हमने सितम बार-बार ढाए हैं।
किसी के शाप से ये वृक्ष बने गये वरना,
ये देवता हैं, जो हालात के सताए हैं।"
उनके एक अन्य मुक्तक —
"मान भले ही कम दे देना, अपमान नहीं देना।
जिसको पाकर तुमको भूलूं, वह वरदान नहीं देना।
मद में डूबे ज्ञानी से तो, अज्ञानी ही अच्छा हूँ।
मुझको मेरी माँ सपने में भी अभिमान नहीं देना।"
ने श्रोताओं को आत्मीयता से जोड़ा और जमकर वाहवाही बटोरी।
फतेहपाल सिंह सारंग की कविता "कोयल, कीर, कपोत, पपैया... नहीं चहकती कोई चिरैया, पर्यावरण बचाने भू पर आ जाओ अब कृष्ण कन्हैया" ने श्रोताओं को भाव-विह्वल कर दिया।
वंदना चौधरी ने घनाक्षरी और मुक्तक शैली में आग्रह किया —
"वृक्ष ही लगाके अब, करना सुधार है।"
उनकी रचनाएँ सौंदर्य और आग्रह का अद्भुत संतुलन लिए हुए थीं।
दीपक कुमार ने अपनी पंक्तियों में प्रलय से बचने के लिए वृक्षारोपण को आवश्यक बताया —
"एक मात्र बस राह सुरक्षित, चलकर वृक्ष लगाएं।
आओ बदलें चित्र विश्व का, ताप, प्रलय से बचाएं।"
अरुण अपेक्षित ने जंगलों की गरिमा का स्मरण कराते हुए लिखा —
"नहीं जंगलीपन जंगल में, सुख लाया, शुभ लाया जंगल।"
रामदेव शर्मा ‘राही’ की रचना "प्यार के फूलों का दीदार सलोना है, दहशत को प्रीत के धागे में पिरोना है" एवं संध्या निगम, रूबी कुमारी, सत्यजीत सोनू, अरविंद कुमार, सुरेश कुमार, तथा सुनीता सैनी गुड्डी, विजेंद्र सैनी, प्रो. सुनील उपाध्याय, जैनेन्द्र मालवीय, डॉ. विजय शंकर, डॉ. रवि प्रकाश, पंकज मिश्र, रीना गुप्ता आदि की प्रस्तुतियाँ मंच को भावनाओं और विचारों की गहराइयों से भर गईं।
कार्यक्रम का समापन डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी के नेतृत्व में हुए पावन शांति पाठ से हुआ, जिसमें सभी कवियों ने शांत मन से पर्यावरण के प्रति श्रद्धा प्रकट की। अंत में, राष्ट्रीय सचिव महावीर सिंह वीर ने सभी प्रतिभागियों, श्रोताओं एवं तकनीकी टीम को धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का सीधा प्रसारण फेसबुक के शब्दवीणा केंद्रीय पेज से किया गया, जिससे जुड़कर डॉ. रवि प्रकाश, पुरुषोत्तम तिवारी, पी.के. मोहन, प्रो. सुबोध झा, प्रो. रामनंदन सिंह, डॉ. गोपाल निर्दोष, प्रतिभा प्रसाद, सुरेश विद्यार्थी, अजय कुमार, हीरालाल साव, राम पुकार सिंह समेत सैकड़ों साहित्य-प्रेमियों ने काव्य-पाठ का रसास्वादन किया। श्रोतागण अपनी टिप्पणियों के माध्यम से रचनाकारों का उत्साहवर्धन करते रहे।
शब्दवीणा का यह आयोजन न केवल एक साहित्यिक समागम था, बल्कि पर्यावरणीय चेतना का जाग्रत संकल्प भी, जो काव्य की पंक्तियों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचा। यह आयोजन इस बात का प्रमाण है कि साहित्य आज भी समाज में चेतना जगाने की सबसे प्रभावशाली विधा है।
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