नारी सौंदर्य का महासागर
मोहक केश कृष्ण घटाएं,सांझ सवेरे इठलाती ।
चारु चंद्र सी चंचलता,
नयन पटल इतराती ।
रवि सम बिंदियां चमक,
झुमकों अंतर नारीत्व उजागर ।
नारी सौंदर्य का महासागर ।।
कपोल बिंदु गुलाबी रंगत,
मुस्कान सह नेह निर्झर ।
अधर लाली अमिय प्याली,
तृषा तृप्ति सदा बहर ।
माणिक हार कंठन शोभा,
स्वर मधुरिमा अभिजागर ।
नारी सौंदर्य का महासागर ।।
कलाई शोभित चूड़ी कंगना,
खनक संग प्रीत स्पंदन ।
अंतःकरण मृदुल मधुर,
स्नेह प्रेम करूणा मंडन ।
कटि सजी कंचुकी अनूप,
लहंगा लहर खुशियां आगर ।
नारी सौंदर्य का महासागर ।।
पायल रुनझुन चंचल नाद,
मेहंदी सजी रंगी श्रृंगार ।
लचक झलक जीवन संनाद,
लावण्य अतुल यौवन झंकार ।
बाह्य परे आत्मिक छवि अनघट,
सृष्टि उत्संग वंदन आदर ।
नारी सौंदर्य का महासागर ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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