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"शांत प्रतिशोध"

"शांत प्रतिशोध"

वो भूमि है तप की,बलिदान की,
संस्कारों वाली पहचान की।
जिसने हर बार क्षमा को ओढ़ा,
नफरत को भी करुणा से जोड़ा।


आतंक की आग बुझाई है,
हर बार शांति अपनाई है।
धैर्य रखा, नीति निभाई,
सीमा पर भी मर्यादा पाई।


पर मत समझो ये मौन डर है,
या सहनशीलता कमज़ोरी है।
ये तो है शौर्य का किस्सा
जो सहता घावों का हिस्सा


हर बार जो खंजर आया,
भारत ने फूलों से समझाया।
पर जब फूल रौंदे जाते हैं,
तो सिंह स्वयं जाग जाते हैं।


वो जो पीठ में वार करे,
नकाब में छुप कर प्रहार करे।
हर षड्यंत्र का जबाव हम हैं
हर धोखे का इलाज हम हैं


कश्मीर की घाटी पूछ रही,
कब तक चलेगा ये खेल बही?
अब बस भी करो, संदेश यही,
शांति हमारी अब क्रोध से सजी।


जब चुप्पी टूटेगी भारत की,
बात न होगी फिर रहमत की।
जो आग हमने रोकी थी,
अब लपट बन उठेगी वो भी।


शब्द नहीं तब वार होंगे,
नीति नहीं, अब प्रहार होंगे।
इतिहास के पन्नों में लिखा जाएगा,
कैसे संयम भी शस्त्र बन जाएगा।


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" 
 (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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