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छूंछ दुलार एवं मुंह का प्यार

छूंछ दुलार एवं मुंह का प्यार

जय प्रकाश कुंवर
कुणाल मुम्बई में रह कर नौकरी करता है। वह एक मल्टी नेशनल कंपनी में मैनेजर के पद पर स्थापित है। उसे अच्छी मोटी तनख्वाह मिलती है। वह वहाँ अपनी पत्नी तथा एकलौते पांच साल के पुत्र के साथ मुम्बई के बान्द्रा इलाके में एक निजी फ्लैट में रहता है। उसने अपने पुत्र का पढ़ाई के लिए एक कन्भेन्ट स्कूल में दाखिला करा रखा है। इस प्रकार कुणाल की जिंदगी ऐशो आराम के साथ मुम्बई में गुज़र रही है।
कुणाल अपने माता पिता का एकलौता संतान हैं, जिसका जन्म बिहार प्रदेश के एक गाँव में हुआ था। जब वह मात्र छ: साल का था तभी उसके पिता का देहांत हो गया था। उसके माता पिता के पास रहने के लिए एक मिट्टी का घर और दो कठ्ठा खेत था। इसके अलावा उन्हें दूसरी कोई चल अथवा अचल संपत्ति नहीं थी। उसके पिता मजदूरी कर पत्नी और बच्चे का परवरिश करते थे। पिता के गुजरने के बाद कुणाल के परवरिश का भार उसकी माता के उपर पड़ गया। उसने भी मजदूरी करना शुरू कर दिया। उसने अपनी सीमित आमदनी में ही कुणाल को पढ़ाना लिखाना शुरू किया और उसके मिहनत मजदूरी कर घर चलाने के फलस्वरूप कुणाल पढ़ लिख कर एक योग्य आफिसर बन गया। अब नौकरी प्राप्त करने के बाद उसकी माता ने उसका शादी भी कर दिया और समय अनुसार उसे एक पुत्र भी हो गया। अब नौकरी के सिलसिले में कुणाल अपने बीबी बच्चे के साथ मुम्बई में रहता है और उसकी माता गाँव में अपने उसी पुराने मिट्टी के घर में रहती है। चूंकि कुणाल की पत्नी कुणाल की माता को पसंद नहीं करती है,और उसे अशिक्षित तथा गंवार औरत बोलती है, इसलिए कुणाल अपनी माता को मुम्बई में अपने साथ नहीं रख पाता है। अगर किसी मौके पर सास बहू दोनों को एक दिन के लिए भी साथ रहना पड़ गया तो घर लड़ाई का अखाड़ा बन कर रह जाता है। पत्नी से नाराजगी के चक्कर में वह अपनी माता को कोई आर्थिक सहायता भी नहीं कर पाता है। वह माता से संपर्क कर केवल इतना ही कह पाता है कि माँ तुम अपना ख्याल रखना।
इधर समय गुजरने के साथ उसकी माता भी अब अस्वस्थ रहने लगी है। अब उसे कोई काम भी नहीं मिल पाता है।अस्वस्थता के कारण अपने सीमित दो कठ्ठा खेत में भी वह कुछ नहीं पैदा कर पा रही है। अब उसके दिन बड़े कठिनाई से गुजर रहे हैं। सबसे बड़ा तकलीफ तो उसे अब तब लगता है, जब उसका लड़का कुणाल उसको खबर भेजता है कि माँ तुम अपना ख्याल रखना और अच्छा से रहना । माँ से इतना भी कहने के लिए कुणाल को अपनी पत्नी से छुपा कर कहना पड़ता है।
इस परिस्थिति में कुणाल का इतना कहना अब उसकी माता को चुभने लगा है और एक दिन उसने मुंह खोल कर कुणाल से कह ही दिया कि बेटा मैं अपना ख्याल कैसे रख पाउंगी जिसके पास अब न तो पैसा है और न शारीरिक क्षमता है। इस युग में पैसे के बिना जिन्दगी एक दिन भी नहीं चल सकती है। लोग पैसा उधार भी उसी को देते हैं, जिससे वापस मिलने की उम्मीद होती है। मुझे भला उधार भी कोई कैसे देगा जिससे उन्हें वापस मिलने की उम्मीद ही नहीं है। गांव इलाके के सभी लोग यही कहते हैं कि उसके बेटे बहू ने उसे छोड़ दिया है और अब उसे कोई पुछने वाला नहीं है। आज के युग में चाहे रक्त संबंध जितना भी नजदीकी क्यों न हो, केवल मुंह का प्यार पेट नहीं भर सकता है। जिस बच्चे को मां अपना दुध पिला कर बड़ा करती है, वह बड़ा आदमी बन कर जब अपनी विधवा माँ से अपनी पत्नी के कहने पर मुंह मोड़ लेता है,तब फिर दूनिया में जीने के लिए कौन सा सहारा रह जाता है । आज पेट भरने और जीने के लिए कदम कदम पर पैसे की जरूरत है। बिना पैसा जीवन शव तुल्य है। बिना रूपये पैसे का छूंछा दुलार और मुंह का प्यार आज के युग में कोई माने नहीं रखता है।
अतः बेटा कुणाल तुम अपने बाल बच्चे के साथ वहाँ खुशहाल रहो और कोशिश करो कि तुम्हारे माँ जैसा तुम्हारे परिवार को भविष्य में कभी पैसे की तंगी ना झेलना पड़े और बड़े होकर तुम्हारे बेटे की शादी होने पर तुम्हारी पत्नी को अपनी बहू से मेरे जैसा अपमान न झेलना पड़े। तुम्हारी माँ का आशीर्वाद तुम लोगों के साथ रहेगा। बाकी मेरा अंत अब नजदीक है और मैं अपना ख्याल रखूंगी।




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