तूने दिया जो गहरा घाव मुझे ,
मेरे लिए अश्कों की सौगात होगी ।मिटी हुई मेरी उस सिंदूर की कसम ,
तेरे घर अश्कों की बरसात होगी ।।
तुझसे आखिरी अब मुलाकात होगी ,
वहीं आखिरी तुझसे अब बात होगी ।
जाऍंगी तेरी माॅं बहनों की भी सिंदूर ,
तुमसब जीवन की अंतिम रात होगी ।।
अब से गंदे जिनके खयालात होगी ,
बद से भी बद्तर उनकी हालात होगी ।
देख सकेंगे जीवन की आखिरी शाम ,
किंतु जीवन में न अगला प्रात होगी ।।
घात किया है जो तुमने यह मुझसे ,
करना मुझे भी तुमसे प्रतिघात होगी ।
मिटी हुई अब उस सिंदूर की कसम ,
एक के बदले अब फिर सात होगी ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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