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नहीं चाहिए कोई दुश्मन,

नहीं चाहिए कोई दुश्मन,

नहीं चाहिए कोई दुश्मन, अब भारत की सीमा में,
भेष बदल छिपे भेड़िये, अब भारत की सीमा में।
सभी भेड़िए मारे जायें, संरक्षकों को उनसे पहले,
कोई बचने न पायेगा, अब भारत की सीमा में।


छद्म वेश में छिपे हुये कुछ, जीवन साथी दुश्मन हैं,
रोहिंग्या बांग्लादेशी, कुछ पाकिस्तानी दुश्मन हैं।
बाप विदेशी- माँ है देशी, बच्चे भारत में पलते हैं,
भारत पर हक़ बतलाते, देशद्रोही आतंकी दुश्मन हैं।


कुछ तो भीतर छिपे हुए हैं, कुछ आने को तैयार खड़े,
कुछ देवबंद कुछ बरेली, जगह जगह मक्कार खड़े।
छद्म वेश में मौलाना जो, इस्लाम नाम पर भड़काते,
ग़द्दारों को संरक्षण देते, मस्जिद मदरसा छिपे खड़े।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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