पाखंड
खंड खंड में पाखंड बना ,अखंड को बनाता खंड है ।
खंड खंड को खंड बनाता ,
पाखंड की शक्ति प्रचंड है ।।
पाखंड बसता अंतर्मन में ,
पाखंड मूल रूप घमंड है ।
पाखंड है तम रूपी खाई ,
असहनीय देता जो दंड है ।।
पंख भी जिसके देते अंड ,
वही कहलाता पाखंड है ।
पाखंड आज है गंड बना ,
पाखंड हथियार बना चंड ।।
पाखंड रहित पंडित बना ,
पाखंड ही करता तंड है ।
पाखंड जन्मा जन जन में ,
पाखंड नहीं पड़ता है ठंड ।।
पाखंड प्रचंड है महामारी ,
पाखंड बनाया मन ये पंड ।
पाखंड पुरुषार्थ ढोता नहीं ,
मानव बनता स्वयं है शंड ।।
पाखंड तो है महा अवगुण ,
पाखंड न होता सद्गुण है ।
पाखंड मन गलत उपजाता ,
पाखंड ही हत्या भ्रूण है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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