माता सीता को बताया शक्ति और सहनशीलता की प्रतिमूर्ति
जहानाबाद । जानकी नवमी के पावन अवसर पर, जहानाबाद के जाने-माने साहित्यकार एवं इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने माता सीता के अद्वितीय गुणों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि माता सीता न केवल शक्ति की बल्कि सहनशीलता की भी अनुपम प्रतिमूर्ति हैं। वैशाख शुक्ल नवमी, यानी सीता नवमी के इस विशेष दिन पर अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री पाठक ने कहा कि जब भी हम रामायण का स्मरण करते हैं, तो प्रायः भगवान श्रीराम, लक्ष्मण अथवा हनुमान जैसे तेजस्वी पुरुष चरित्रों पर हमारा ध्यान केंद्रित होता है। परन्तु, हमें उस महान शक्ति को भी अनुभव करना चाहिए, जिन्होंने बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के और बिना किसी कोलाहल के, एक पूरे युग की दिशा बदल दी—और वह शक्ति थीं माता सीता। उन्होंने आगे कहा कि यह सीता नवमी का पवित्र अवसर है, जब धैर्य, मर्यादा और शक्ति ने धरती पर अवतार लिया था। मिथिला के महाराज जनक जब हल से भूमि जोत रहे थे, तब पृथ्वी से एक अद्भुत कन्या प्रकट हुईं—यही भूमिजा, जनकनंदिनी जानकी, हमारी पूजनीय माता सीता कहलाईं। यह मान्यता है कि माता सीता देवी लक्ष्मी का ही स्वरूप थीं और भगवान श्रीराम की जीवनसंगिनी बनीं। श्री पाठक ने जोर देकर कहा कि माता सीता केवल एक रानी ही नहीं थीं, बल्कि वे आत्मबल, करुणा और उच्च आदर्शों का साकार रूप थीं। आज के युग में, जहाँ शक्ति का मूल्यांकन प्रायः बाहरी प्रदर्शन से किया जाता है, माता सीता हमें यह महत्वपूर्ण शिक्षा देती हैं कि वास्तविक शक्ति संयम, सहिष्णुता और आंतरिक दृढ़ता में निहित होती है। उन्होंने राजसी वैभव से लेकर वनवास की असहनीय पीड़ा, बंदी जीवन से लेकर त्याग की पराकाष्ठा तक, अपनी हर भूमिका को बिना किसी शिकायत के, पूर्ण गरिमा और अटूट आत्मबल के साथ निभाया। उन्होंने यह भी कहा कि माता सीता ने हमें यह अमूल्य ज्ञान दिया कि शक्ति का अर्थ केवल प्रतिरोध करना ही नहीं है, बल्कि सहनशीलता में भी एक महान क्रांति छिपी होती है। उनका जीवन आज की सभी महिलाओं के लिए एक महान प्रेरणास्रोत है—यह सीखने के लिए कि कैसे बिना किसी हथियार को उठाए, केवल अपने चरित्र और दृढ़ संकल्प से पूरी दुनिया की सोच को बदला जा सकता है। सत्येन्द्र कुमार पाठक ने अंत में कहा कि सीता नवमी मात्र एक जन्मोत्सव नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा महत्वपूर्ण दिन है जो हर युग को यह याद दिलाता है कि मौन में भी अपार शक्ति होती है, और सहनशीलता में भी एक बड़ी क्रांति छिपी होती है। माता सीता उस आदर्श का नाम हैं, जिन्होंने एक स्त्री की भूमिका को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया—संघर्षों में अडिग रहकर भी मर्यादा में सदैव अटल रहीं।
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