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हमें राष्ट्र की अंंथता है मिटानी

हमें राष्ट्र की अंंथता है मिटानी

डॉ रामकृष्ण मिश्र
हमें राष्ट्र की अंंथता है मिटानी
चलें साथ मिल ज्ञान दीपक जलाएँ‌।।

बहुत स्वार्थियों ने प्रवंचन किया है
कई बिंदुओं पर समंजन किया है।
सरलता हमारी समझ वंचकों ने
दिवस के उजाले में लुंठित किया है।।
समय आ गया है समझ आ गया है
‌‌‌‌‌ उठें झार तन अपनी तंद्रा भगाएँ ।।


बिछी हैं चतुर्दिक जहाँ शूल अविरल
सहज घेरती हैं समस्याएँ अविकल।
असहनीय प्रतिवेशियों के कुचिंतन
अनैतिक दुराग्रह रहे शत्रु संबल।।
बहुत हो गया आत्म संतोष क्रंदन
अभी सुप्त संवेग ऊर्जा जगाएँ।।


न पर्वत न सरिता न आकाश तारे
सभी हैं डटे आत्म बल के सहारे।
अमरता हमारी भुजाओं में वसती
तभी कीर्ति पाते हैंं पौरुष हमारे।।
बने आज हम सब स्वयं लोक सर्जक
नये विश्व को सर्व सेवक बनाएँ ।
रामकृष्ण
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