दिव्य रश्मि और भारत
डॉ राकेश कुमार
दिव्य रश्मि' के कई अंकों को पढ़ने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वास्तव में यह भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की परंपरा को आगे बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य करने वाला एक ज्योति स्तंभ है। यह भारत की उस दिव्यता को संसार के कोने कोने में फैला देने का एक अभियान है जो भारत को वास्तव में ' भारत' बनाती है। भारत अर्थात आभा में रत ।ज्ञान की दीप्ति में रत। ज्ञान की दीप्ति का ही अभिप्राय दिव्य रश्मि से है।
जब हम गायत्री मंत्र का जप करते हैं तो उसमें हम परमपिता परमेश्वर के दिव्य तेज को धारण करने की प्रार्थना ईश्वर से करते हैं। जी हां, ईश्वर का वह तेज जो दुष्टों , राक्षसों, अत्याचारियों, पापाचारियों का दमन करता है , उनका विनाश करता है और संसार के दिव्य पुरुषों की अर्थात सज्जनों की रक्षा करता है। हमारा मूल उद्देश्य दिव्यता को प्राप्त करना है ।
हमारा लक्ष्य दिव्यता में खो जाना है। हमारा अभियान दिव्यता का प्रचार प्रसार करना है। यह भारतीय संस्कृति का और भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का मूल मंत्र है। हम भारतवासी अपने मौलिक स्वभाव में परमपिता परमेश्वर के तेज के अर्थात ऊर्जा के, एनर्जी के उपासक हैं। इसीलिए प्राचीन काल से हमने अनेक अनुसंधान किए हैं। बिना ऊर्जा के या परमपिता परमेश्वर के बिना तेज के कोई भी अनुसंधान संभव नहीं है। संसार का इतिहास बताता है कि आज तक जितने भर भी अनुसंधान आविष्कार हुए हैं, वह सब भारतीयों के द्वारा ही किए गए हैं। इसका कारण केवल एक है कि हम दिव्यता के साथ समन्वय स्थापित कर अपने आप को निरंतर आगे बढ़ाते रहने के लिए संकल्पित रहते हैं। जो रुक गया , समझो वह मर गया और जो निरंतर चल रहा है , जो चरैवेति चरैवेति के मूल मंत्र को अपनी सोच का केंद्र बिंदु बना लेता है , संसार में चल रहीं प्रतियोगिताओं में वही सफल होता है और वही अपने अस्तित्व को बचाए रखने में सफल होता है। यदि आज हम सनातन को संसार की अनेक प्रकार की दुष्टता पूर्ण प्रतियोगिताओं के बीच भी खड़ा हुआ देखते हैं तो इसके पीछे केवल एक ही कारण रहा है कि हमने दिव्यता की उपासना की है । तेज की उपासना की है। एनर्जी को अपनाया है।
' दिव्य रश्मि' भारत की इसी मौलिक चेतना को प्रचारित प्रसारित करने के लिए संकल्पित है। वह दिव्यता के तेज को बिखराकर संसार से अज्ञानता के अंधकार को मिटा देना चाहती है। भारत के सांस्कृतिक मूल्यों को संसार के कोने-कोने में फैला देना चाहती है। मानवतावाद का परचम संसार में फहराकर सभी लोग वसुधैव कुटुंबकम की पवित्र भावना के साथ अपना समन्वय स्थापित कर एक ही उद्देश्य के प्रति समर्पित होकर आगे बढ़ें - यही ' दिव्य रश्मि' का उद्देश्य है। सर्वत्र सनातन हो, सनातन की मान्यताएं हों , सनातन के मानवीय मूल्य हों, सबको साथ लेकर चलने का भारत का प्राचीन संकल्प सारी मानवता का सूत्र वाक्य बन जाए - यही दिव्य रश्मि का मनोरथ है।
राजनीतिक क्षेत्र में भी ' दिव्य रश्मि' का अपना एक विशेष उद्देश्य है कि हिंदू राष्ट्र की स्थापना की जाए। सावरकर जी का यह सूत्र वाक्य इसको और भी अधिक ऊंचाई देता है कि "राजनीति का हिंदूकरण और हिंदुओं का सैनिकीकरण किया जाए। जिस दिन भारत सनातन के इस दिव्य पथ पर चल पड़ेगा, उस दिन भारत से अनेक प्रकार की समस्याओं का लोप हो जाएगा। अतीत में हमने अपनी सद्गुण विकृति के कारण जिन गलतियों को किया है, उनसे हम शिक्षा लें और अपने वर्तमान को सुधार कर भविष्य को उज्जवल बनाने का सपना बुनें। राष्ट्रवादी पत्रिका दिव्य रश्मि घटनाओं का, इतिहास का ,इतिहास के संदर्भों का और इतिहास के दृष्टांतों की इसी प्रकार समीक्षा करती है। इसकी मान्यता है कि जो "बीत गया सो बीत गया"- उसे इस दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता नहीं है बल्कि इस दृष्टिकोण से उसकी समीक्षा करने की आवश्यकता है कि जो बीता है, वह कैसे-कैसे बीता है और कौन से घाव देकर बीता है या कौन सी अच्छाइयां देकर बीता है ? और उन घावों या अच्छाइयों को हम आज के संदर्भ में किस प्रकार अपनाकर अपने श्रेष्ठ समाज की रचना कर सकते हैं ? किस प्रकार अपने देश भारत को महान बना सकते हैं विश्व गुरु बना सकते हैं ?
मैथिली शरण गुप्त जी ने कहा है कि: -
” वे मोह-बन्धन-मुक्त थे, स्वच्छन्द थे, स्वाधीन थे;
सम्पूर्ण सुख-संयुक्त थे, वे शान्ति-शिखरासीन थे ।
मन से, वचन से, कर्म्म से वे प्रभु-भजन में लीन थे,
विख्यात ब्रह्मानन्द – नद के वे मनोहर मीन थे॥
उनके चतुर्दिक-कीर्ति-पट को है असम्भव नापना,
की दूर देशों में उन्होंने उपनिवेश-स्थापना ।
पहुँचे जहाँ वे अज्ञता का द्वार जानो रुक गया,
वे झुक गये जिस ओर को संसार मानो झुक गया॥”
मैथिलीशरण गुप्त जी के ये शब्द उनकी कविता की कोई पंक्तियां नहीं हैं , मैं समझता हूं कि ये ' दिव्य रश्मि' के अभियान को संक्षिप्त सारगर्भित शब्दों में स्पष्ट करने वाले शब्द हैं। भारत के अतीत के इसी वैभवशाली पक्ष को स्थापित करना ' दिव्य रश्मि' का पावन उद्देश्य है। इन्हीं शब्दों से निकलने वाले दिव्य पथ को दिव्य रश्मि का कीर्ति पथ कहा जा सकता है।
मैं पत्रिका के संपादक महान राष्ट्रवादी चिंतक, विचारक और अपने देश धर्म की रक्षा के प्रति संकल्पित श्री राकेश दत्त मिश्र जी और उनकी सारी टीम को पत्रिका के वार्षिक उत्सव के अवसर पर अपनी हार्दिक शुभकामनाएं संप्रेषित करता हूं। जिनके अथक प्रयास से यह पत्रिका मानवता के कीर्तिमान स्थापित करती हुई निरंतर आगे बढ़ रही है। जिनका परिश्रम, पुरुषार्थ और प्रयास राष्ट्र के लिए वंदनीय है । जिनकी ऊर्जा राष्ट्र को सही दिशा प्रदान कर रही है और जिनका चिंतन भारत के राष्ट्रवाद को बलशाली कर रहा है।
' दिव्य रश्मि' और भारत का यदि परस्पर संबंध निर्धारित किया जाए तो दोनों समानार्थक हैं। दिव्य रश्मि हमारी युगों पुरानी विरासत की प्रतीक है और भारत उस सनातन विरासत का स्वामी राष्ट्र है। राष्ट्र भी एक सनातन विचार है और दिव्य रश्मि भी एक सनातन राष्ट्र विचार है। दोनों का दिव्य और पवित्र संबंध है।
मैं परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वह ' दिव्य रश्मि' को नई उड़ान देते रहने के लिए नए पंख प्रदान करें और उसे अपने कीर्ति पथ पर सुंदरतम व श्रेष्ठतम कार्यों के फूल बिखेरते जाने के लिए सदैव नव स्फूर्ति और नव ऊर्जा प्रदान करते रहें। जिससे वह जागरूक रहे। चिरंतन रहे। सनातन और शाश्वत रहे। बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
( सुप्रसिद्ध डॉ राकेश कुमार आर्य इतिहासकार , लेखक एवं भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता )
दयानंद स्ट्रीट, सत्यराज भवन, (महर्षि दयानंद वाटिका के पास)
निवास : सी ई 121 , अंसल गोल्फ लिंक - 2, तिलपता चौक , ग्रेटर नोएडा, जनपद गौतमबुध नगर , उत्तर प्रदेश । पिन 201309
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