एक चिटकी सिंदूर का महत्व
छिना था अलग सिंदूर जिसने ,पड़ गया आज सिंदूर से पाला ।
एक चिटकी सिंदूर को देख लो ,
क्या से क्या आज करा डाला ।।
चिटकी भर सिंदूर महत्व देख ,
दो अपरिचित दिल मिलते हैं ।
दो जिस्म एक जान होते दोनों ,
दोनों दिल कली सा खिलते हैं ।।
चिटकी भर सिंदूर का मोल देख ,
कैसे जड़ से विनाश कराता है ।
दूसरे का नाश भाता जिसको ,
आज स्वयं भय क्यों खाता है ।।
यह सिंदूर उस भारतीय माॅं की ,
उर से जिसके जाती आह कहाॅं !
तेरी पत्नी भी माॅं बहन ही होगी ,
तेरा भी सुदृढ़ यह निकाह कहाॅं!!
दूसरे का सिंदूर तूने ही छिना है ,
तेरी पत्नी का सिंदूर छिनाएगा ।
तेरी माॅं बहन का भी ये सिंदूर ,
अब कभी भी टिकने न पाएगा ।।
पाक जो आज नापाक हुआ है ,
वह फिर से ये पाक हो जाएगा ।
ध्वस्त होगा यह नापाक जीवन ,
सृष्टि का ये नाक हो जाएगा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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