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मौन रह कर कब कोई, विपदाओं से लड़ सका,

मौन रह कर कब कोई, विपदाओं से लड़ सका,

कर्म पथ आगे बढ़ा जो, नव पथ पर बढ सका।
क्या मेरा था खो गया जो, व्यर्थ ही चिंता करें,
बहता दरिया प्यास बुझाता, वह कब सड़ सका?


रिश्ते नाते भी धरा तक, अर्थ भी तो व्यर्थ है,
काम किसी के आ सकेगा, जो स्वयं समर्थ है।
“मैं हूँ ना” कृष्ण कहते, जो सर्वशक्तिमान हैं,
धर्म विरुद्ध जो भी करेंगे. वह सब अनर्थ हैं।


चिन्ता छोड़ो सुख से रहो, शास्त्रों का सार है,
मानवता हित कर्म होना, धर्म का विस्तार है।
पाप पुण्य परिभाषा, सबने अपने हित गढ़ी,
सत्य भाव कर्म करना, गीता का विचार है।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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