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“दिव्य रश्मि” – एक पत्रिका नहीं, एक सांस्कृतिक आंदोलन

“दिव्य रश्मि” – एक पत्रिका नहीं, एक सांस्कृतिक आंदोलन

डॉ. अंकेश कुमार, प्राचार्य, भारती मध्य विद्यालय लोहियानगर,पटना

पत्रिकाएँ केवल काग़ज़ पर छपने वाले शब्दों का संग्रह नहीं होतीं, वे समाज के मिज़ाज, उसकी चेतना, उसकी दिशा और दशा का प्रतिबिंब होती हैं। ऐसी ही एक प्रबुद्ध एवं प्रकाशवान पत्रिका है – "दिव्य रश्मि", जो न केवल साहित्यिक और वैचारिक मंच प्रदान करती है, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में समाज को आलोकित कर रही है।

हालाँकि इसका प्रथम प्रकाशन वर्ष 1984 में हुआ था, लेकिन 2014 से यह विधिवत रूप से मासिक पत्रिका के रूप में लगातार प्रकाशित हो रही है। वर्ष 2025 में यह पत्रिका अपने 11वें स्थापना दिवस (28 मई) पर एक और आकर्षक अंक के साथ हमारे सामने प्रस्तुत है, जो न केवल इसकी निरंतरता का प्रतीक है, बल्कि इसकी बढ़ती प्रासंगिकता और लोकप्रियता का भी परिचायक है।

पत्रकारिता का उत्तरदायित्वपूर्ण स्वरूप

लोकतंत्र के चार स्तंभों में से एक, “पत्रकारिता”, समाज का आईना होती है। लेकिन जब पत्रकारिता केवल समाचार संकलन तक सीमित न रहकर समाज को दिशा देने, सांस्कृतिक चेतना जगाने, भाषा को समृद्ध करने और धार्मिक तथा राजनीतिक विषयों पर संतुलित विमर्श प्रस्तुत करने का कार्य करे – तब वह एक आंदोलन का स्वरूप ले लेती है। "दिव्य रश्मि" ने यही किया है। यह केवल एक पत्रिका नहीं रही, बल्कि एक विचारधारा, एक वैचारिक क्रांति, एक बौद्धिक यात्रा बन चुकी है।

समाज में जब सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा हो, जब सामाजिक विमर्श केवल सतही सूचनाओं में सिमट कर रह गया हो – ऐसे समय में "दिव्य रश्मि" जैसे प्रयास अत्यंत प्रशंसनीय और आवश्यक हैं। यह पत्रिका ज्ञानपरक, वैज्ञानिक सोच, अध्यात्म, संस्कृति, राजनीति और धर्म के संतुलन को बनाए रखते हुए विविध विषयों को यथार्थ और विचारोत्तेजक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करती है।

"दिव्य रश्मि" – एक नाम, अनेक अर्थ

जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है – "दिव्य रश्मि", अर्थात् दिव्यता की वह किरण जो अंधकार को हटाकर आलोक बिखेरे। यह पत्रिका अपने लेखों, सम्पादकीय और स्तंभों के माध्यम से समाज के चारों ओर व्याप्त नैराश्य, भ्रम और विषमता को हटाकर एक नवीन दृष्टि, सकारात्मक ऊर्जा और सशक्त विचार प्रदान कर रही है।

इसका उद्देश्य केवल सूचना देना नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना का जागरण, सामाजिक समरसता का विस्तार और राष्ट्र निर्माण में बौद्धिक सहयोग प्रदान करना है।

चार स्तंभ – शिक्षा, समाज, धर्म और राजनीति

  • “दिव्य रश्मि” का सम्पूर्ण ढांचा चार प्रमुख स्तंभों पर आधारित है –
  • शिक्षा, समाज, धर्म और राजनीति। यह पत्रिका इन चारों क्षेत्रों में अपने संतुलित और शोधपरक आलेखों के माध्यम से पाठकों को न केवल जानकारी देती है, बल्कि उन्हें विचारशील भी बनाती है।
  • शिक्षा के क्षेत्र में यह पत्रिका बालकों से लेकर युवाओं तक के लिए प्रेरणादायक सामग्री प्रस्तुत करती है।
  • सामाजिक क्षेत्र में यह समाज में व्याप्त कुरीतियों, असमानताओं और विघटनकारी प्रवृत्तियों के प्रति सचेत करती है।
  • धर्म को अंधविश्वास नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आत्मिक शुद्धता के माध्यम से प्रस्तुत करना इसका उद्देश्य है।
  • राजनीति में यह किसी विचारधारा विशेष की नहीं, बल्कि राष्ट्रहित की विचारधारा को प्राथमिकता देती है।

आकर्षक कवर और संग्रहणीय सामग्री

पत्रिका का प्रत्येक अंक आकर्षक कवर पृष्ठ के साथ प्रकाशित होता है, जिसमें विषयवस्तु का अच्छा समन्वय देखने को मिलता है। इसके भीतर प्रकाशित आलेख न केवल विशिष्ट होते हैं, बल्कि इतने गंभीर और संग्रहणीय होते हैं कि बार-बार पढ़ने पर भी नवीन अर्थ और दृष्टिकोण सामने आते हैं।

डिजिटल युग में भी प्रभावी उपस्थिति

आज जब डिजिटल प्लेटफार्म पर अधिकतर सामग्री क्षणभंगुर और सतही हो गई है, ऐसे समय में “दिव्य रश्मि” ने स्वयं को डिजिटल प्लेटफॉर्म्स जैसे यूट्यूब, वेबसाइट और वर्ल्ड वाइड लिंक पर भी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है। यह पत्रिका तकनीक के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है और वैश्विक पाठकों तक अपनी सामग्री पहुंचा रही है। यही इसकी प्रासंगिकता और लोकप्रियता का राज है।

सम्पादकीय और स्थाई स्तंभ

डॉ. राकेश दत्त मिश्र द्वारा लिखे गए सम्पादकीय अत्यंत ही समसामयिक, संवेदनशील और राष्ट्रहित से ओतप्रोत होते हैं। उनके विचार सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में गंभीर विमर्श को जन्म देते हैं। इन सम्पादकीयों में न केवल यथार्थ का चित्रण होता है, बल्कि एक दिशा भी प्रदान की जाती है।

श्री रविशेखर सिन्हा द्वारा लिखे गए आलेख अत्यंत ज्ञानवर्धक और संग्रहणीय होते हैं। वे व्रत-त्योहारों की परंपरा, वैज्ञानिक पृष्ठभूमि और सांस्कृतिक मूल्यों को गहराई से प्रस्तुत करते हैं।

पत्रिका के अन्य स्थायी स्तंभ जैसे – दिव्य डेस्क, ज्योतिष, धर्म, आस्था, इतिहास और पुराण कथाएं – भी विशेष रूप से सराहनीय हैं। इन विषयों में निहित वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तर्क, तत्वज्ञान, दर्शन और अध्यात्म को जिस रूप में प्रस्तुत किया गया है, वह पाठकों को जीवन के गूढ़ पहलुओं को समझने की प्रेरणा देता है।

पाठकों के बीच एक क्रांति

विगत 11 वर्षों में “दिव्य रश्मि” ने पाठकों के बीच एक वैचारिक क्रांति का कार्य किया है। आज जब पाठकों का झुकाव त्वरित सूचना और मनोरंजन की ओर अधिक है, तब इस पत्रिका ने गंभीर पाठकों को एक ऐसा मंच प्रदान किया है जहाँ वे गहराई से सोच सकें, आत्ममंथन कर सकें और जीवन की दिशा तय कर सकें।

इस पत्रिका की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह प्रचार से अधिक प्रभाव पर विश्वास करती है। इसका प्रत्येक अंक अपने आप में एक दस्तावेज होता है – विचारों, दृष्टिकोणों और समसामयिक विमर्शों का संग्रथित रूप।

संपादन और नेतृत्व – साधुवाद के पात्र

पत्रिका के प्रारंभिक संपादक स्व. पंडित सुरेश दत्त मिश्र स्मृतिशेष हैं, जिनकी दूरदृष्टि और साहित्यिक चेतना ने इसकी नींव रखी। वर्तमान में डॉ. राकेश दत्त मिश्र ने जिस लगन, परिश्रम और समर्पण से इस पत्रिका का संपादन किया है, वह सचमुच अनुकरणीय है।

डॉ. मिश्र ने न केवल संपादकीय के माध्यम से अपनी सोच का परिचय दिया, बल्कि एक पूरे संपादकीय दल को संगठित कर पत्रिका को एक विचार मंच, सांस्कृतिक आंदोलन और साहित्यिक धरोहर में बदल दिया।

“दिव्य रश्मि” केवल एक पत्रिका नहीं, एक संस्कृति है, विचार है, क्रांति है, और आशा का प्रकाश है। यह पत्रिका आने वाले वर्षों में और अधिक समृद्ध हो – यही अपेक्षा और विश्वास है।

डॉ. राकेश दत्त मिश्र और उनकी संपादकीय टीम को हृदय से साधुवाद, बधाई और “दिव्य रश्मि” पत्रिका को अनंत शुभकामनाएँ। यह पत्रिका यूँ ही प्रज्वलित रहे, दिशा देती रहे और समाज को आलोकित करती रहे।

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