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दादा और पोता ,

दादा और पोता ,

बिड़नी का खोंता ।
ढेला जो चलाए ,
वही तो है रोता ।।
दादा मेरे लंबे ,
मैं हूॅं खिलौना ।
किंतु मेरे सामने ,
बन जाते बौना ।।
दादाजी हमारे ,
बहुत बोले प्यारे ।
मेरे वे दीवाने ,
हम उनके दुलारे ।।
दिनभर का धंधा ,
मुझे बैठाते कंधा ।
कभी ऊब न पाते ,
मेरे प्यार में बॅंधा ।।
जब पाते मुझे रोते ,
शीघ्र दौड़े वे आए ।
मुझे गोद उठाकर ,
पुचकारे सहलाए ।।


पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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