दादा और पोता ,
बिड़नी का खोंता ।ढेला जो चलाए ,
वही तो है रोता ।।
दादा मेरे लंबे ,
मैं हूॅं खिलौना ।
किंतु मेरे सामने ,
बन जाते बौना ।।
दादाजी हमारे ,
बहुत बोले प्यारे ।
मेरे वे दीवाने ,
हम उनके दुलारे ।।
दिनभर का धंधा ,
मुझे बैठाते कंधा ।
कभी ऊब न पाते ,
मेरे प्यार में बॅंधा ।।
जब पाते मुझे रोते ,
शीघ्र दौड़े वे आए ।
मुझे गोद उठाकर ,
पुचकारे सहलाए ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com