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चिंता नहीं, चिंतन कीजिए

 

चिंता नहीं, चिंतन कीजिए

रात्रि का अंधकार केवल बाहरी होता है — वह दीप से मिट सकता है। परंतु सोच का अंधेरा भीतर पनपता है, और यही सबसे अधिक खतरनाक है। जब मन चिंता से भर जाता है, तब वह वर्तमान को निगलने लगता है और भविष्य को भय से रंग देता है।

चिंता मन को जकड़ती है, जबकि चिंतन मन को दिशा देता है। एक व्यक्ति जो चिंतन करता है, वह समाधान खोजता है; पर जो चिंता में डूबा है, वह केवल समस्याओं को देखता है।

इसलिए जीवन में जब अंधकार घने हो जाएँ, तो दीपक की नहीं — विवेक की आवश्यकता होती है। अपने विचारों को परखें, उन्हें दिशा दें।
सोच का उजाला ही जीवन को अर्थ देता है।

यही कारण है कि — चिंता नहीं, चिंतन कीजिए।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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