Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

अलभ्य शब्द

अलभ्य शब्द

शब्दों के पंखों पर चढ़
मैं उड़ना चाहता था नभ में,
पर हर बार स्वप्न-सी गति
छूट गई अंजाने रज में।


वे शब्द, ज्योति-रेखाएँ बन
मुझसे आगे बढ़ते जाते,
और मैं, नभ के एकाकी तारे-सा
मूक तमस में डूबे जाते।


कभी भावों का चंचल झुँड
प्रलय-वात जैसे आता है,
स्पर्श कर अनदेखे पथ से
अनागत दिशा में जाता है।


मैं नीरव लहरों-सा व्याकुल,
बाँहें फैलाए बढ़ता जाता,
पर शब्द — वे चाँदनी-छाया
हृदय-गगन से फिसल न आता।


पीड़ा की वंशी बजती है,
तानों में है मौन की ध्वनि,
भावों का मधुमय अम्बर
छुपा रहा मुझसे अपनी रजनी।


फिर भी लहरों-सी आशाएँ
हर साँझ, हर प्रभात जगे,
शब्दों की उस चुप दौड़ में
मेरे स्वर भी एक दिन लगे।


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" 
 (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ