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जिसे चाहता जी से

जिसे चाहता जी से

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•

(पूर्व यू.प्रोफेसर)

जिसे चाहता जी से कोई मुश्किल से मिलता है,यारो।
दूर लटकता मीठा फल तो बौनों को ठगता है, यारो।
सड़क किनारे जान बचा कर पड़े हुए निरीह पत्ते जो
उन्हें नचा कर चण्ड बिंडोवा तहस नहस करता है यारो।
लोहा लोहे से कटता है,यह बयान आधा ही सच है,
लोहा गर्म गर्म से नहीं, ठंढे से ही कटता है, यारो।
अंदर साहब की खुशतर कुतिया बिस्तर कर रही गरम,
बाहर अलसेशियन श्वान दोगला भौंकता है, यारो ।
लिए पींजड़ा घात लगाए कब से बैठे हैं सय्याद ,
एक शेर ही बचा हुआ जिससे साहब डरता है, यारो ।


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