त्रस्त मध्यम वर्ग
भ्रष्ट नेताओं और उद्योगपतियों का गठबंधन मस्त है,देश की अकूत संपदा पर उनका कब्ज़ा जबरदस्त है।
कानून-कायदे सब उनके आगे नतमस्तक हो जाते हैं,
गरीबों की लाचारी को वो बस आंकड़ों में दिखाते हैं।
तथाकथित गरीब मुफ़्त का माल लपेटने में व्यस्त है,
नेताओं की सत्तालोलुपता के कारण निर्धन मस्त है।
राशन, छूट, योजनाओं की बौछारें बहा दी,
पर असली विकास की बातें कहीं गहरी दफना दी।
टैक्स के बोझ से टूटी कमर लिए मध्यम वर्ग त्रस्त है,
हर तरफ़ से पिसता है, फिर भी सबसे ज्यादा व्यस्त है।
न कोई छूट, न कोई सहारा, बस कर्तव्यों का बोझ है,
ईमानदारी के इनाम में, बस बढ़ते बिलों की फ़ौज है।
कमाता है, चुकाता है, फिर भी वह अपराधी कहलाता है,
सरकार की नजरों में कभी ज़रूरी नहीं बन पाता है।
आवाज़ उठाए तो उपेक्षा का जवाब मिलता है,
चुप रहे तो टैक्स का बोझ और शोषण हर साल बढ़ता है।
ये देश चलता है मेहनतकश हाथों की ताक़त से,
पर नीति बनती है सिर्फ़ अमीरों की चाहत से।
अब समय है कि मध्यम वर्ग भी अपनी बात रखे,
अन्याय के इस चक्र को खुलकर ध्वस्त करे!
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से"
(शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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