जो गिरा हुआ पहले ही, उसको और गिराना क्या,
नहीं बचा हो चरित्र कहीं, चरित्र राग सुनाना क्या?मरा हुआ ही कहलाता, ज़मीर नहीं ज़िन्दा जिसका,
मरे हुए को और मारकर, खुद पर दोष लगाना क्या?
बिकने को जो आतुर हो, भाव उसी के लगते हैं,
दो कौड़ी में बिकते, कुछ भाव लगाया करते हैं।
कुछ की तो औक़ात नही, दो पैसे भी मोल लगे,
ऐसे ही थोथे चने ‘आप’, गाल बजाते फिरते है।
जब भी देखा थोथे को ही, ज्यादा बजते देखा,
जब तक भरा घडा अधूरा, खूब छलकते देखा।
थी जिसकी औकात नही, कौडी में बिक जाने की,
खरीदार की क्षमताओं पर, सवाल उठाते देखा।
झूठ फरेब और बेईमानी, शराब में लिप्त जिन्हें देखा,
शिक्षा और स्वास्थ्य में भी, घोटाला करते जिनको देखा,
भ्रष्ट आचरण जिस दल का था, लूट लिया मुल्क सारा,
राष्ट्र निर्माताओं की क्षमता, सवाल उठाते उनको देखा।
बता रहे हैं पन्द्रह करोड़, दाम लगायें भाजपा ने,
ख़रीद फ़रोख़्त अभियान चलाया, कह रहे भाजपा ने।
आप विधायक बिकने को आतुर, ऐसा लगता खड़े हुए,
अभी दाम लगाये थोड़े कम, बता रहे हैं भाजपा ने।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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