Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

कठपुतली की व्यथा

कठपुतली की व्यथा

पंकज शर्मा
मैं कठपुतली! कौन नचाता?,
देखें सब ही, नजर न आता।।
हर इंगित पर नाच रही हम,
दर्द हमारा कौन बताता?।


तुम कठपुतली, हम कठपुतली,
प्रारब्ध लिए नाच रहे हैं।
कर्मों के फल को भोगे है,
गाथा उसकी बाँच रहे हैं।।


धागों से बंधी, बेबस सी मैं,
अपनी मर्ज़ी से हिल न पाती।
नाचती हूँ मैं औरों की धुन पर,
अपनी धुन कोई सुन न पाती।।


भीड़ खड़ी है तमाशा देखने,
वाह-वाह की गूँज है चारों ओर।
पर कोई नहीं समझता मेरे मन की,
छिपा है जो पीड़ा का एक शोर।।


ये धागे ही मेरी तकदीर हैं,
इनसे ही बंधी मेरी हर गति है।
मुक्ति की आशा भी कैसे करूँ मैं,
जब हर साँस पराई मति है।।


कभी सोचा है तुमने, ओ दर्शकों,
क्या बीतती है इस कठपुतली पर?
हँसी के पीछे छिपे आँसूओं को,
पहचानो कभी इस बेबसी पर।।


कब टूटेंगे ये बंधन मेरे,
कब मिलेगी मुझे आज़ादी?
कब नाचूँगी मैं अपनी धुन पर,
कब समाप्त होगी दासता मेरी?


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" 
 (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ