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" क्लीं"

जगदम्बा के मन्दार-स्तबक-सुभग चरणों में निवेदित ---

" क्लीं"

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•

(पूर्व यू.प्रोफेसर)
पंचकृत्यकारिणि जगदम्बे तू विराजती स्ववशा ,
कभी सिंह पर कभी प्रेत पर कभी रक्त पंकज पर।
विष्णु केसरी प्रेत सदाशिव ब्रह्मा लोहित पंकज,
क्रियावान् तुझसे त्रिदेव हैं प्राणवान् सचराचर ।
निज इच्छा-लीला-कलेवरा चिदानन्दलहरी माँ ,
नहीं समझ सकते माया के मारे प्राणी पामर ।
सीतावेशधारिणी तू ही तुलजेश्वरी भवानी,
रामप्रणमिते,रहे शिवा जी समाराधना-तत्पर।
चिताभूमि इस हृदयपटल पर खड्गधारिणी नाचो,
कट जाए भ्रम-जरठजाल,हो छिन्न संसरण सत्वर।
षट्पद बन रम जाने दो मन्दार-सुभग चरणों में, 
करुणा-सान्द्र नयन से निरखो भावाकुल अन्तरतर ।

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