बेवा की कड़वी सच्चाई
बेवा की जिंदगी वीरान-सी होती है,जिंदगी को जीना पहाड़-सी होती है।
सारा जीवन एक बोझ बन जाता है ,
जब अपने भी साथ छोड़ जाता है।
जिंदगी में बस सुनापन रह जाता है,
यही देखकर मन बहुत ही घबराता है।
धन हेतु परिजन गिद्ध बन जाते हैं,
जिस्म हेतु लोग राक्षस बन जाते हैं।
बेवा की घर में कोई इज्जत नहीं है,
बाहर भी तो वह सुरक्षित नहीं है।
मन में अंतर्द्वंद्व यही चल रही है,
क्या करें ना करें दिल की यही उलझन है।
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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