अपना कोई नही है
जमाना देखो आज कल का।कितना ज्यादा बदल गया है।
जिसमें रिश्ते नाते भी आज कल।
सभी को एक व्यापार से लगते है।।
बहुत बुरा तब लगता है हमें।
जब अपने हाथ जोड़ लेता है।
और वर्षो के संबंधो को वो।
एक दम तार-तार कर देते है।।
जीवन भर जिसको आगे किया।
आज उसने ही उसको रुला दिया।
जिसका दर्द उसके चेहरे पर।
आज कल बहुत झलक रहा है।।
इस तरह की घटनाओं के कारण।
दिल दिमाग पर असर हो रहा है।
और अपनापन उसका छिड़ हो गया है।
जिसे न किसी से कह रहा न सुन रहा है।।
अब में और तब में बहुत अंतर होता है।
अपने पराये का खेल भी ऐसे ही होता है।
जैसे कल का आज से मिलन नही होता।
वैसे ही इंसान का इंसान दुश्मन होता है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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