पथ और पथिक
तुम तो हो पथ मेरे ,मैं ही हूॅं पथिक तेरा ।
तुम्हीं तो साथ देते ,
उर हो व्यथित मेरा ।।
पथ पथिक का रिश्ता ,
जोड़ता ये जमाना है ।
समय पा मोड़ लेता ,
विद्वानों ने माना है ।।
जीवन है तेरा पथिक ,
तू पथ उसका प्राण ।
दोनों हैं चिर परिचित ,
दोनों दूजे के त्राण ।।
दोनों दूजे बिन अधूरे ,
जन्म से बनते हैं मीत ।
दोनों जुदा पल नहीं ,
गर्मी वर्षा या हो शीत ।।
सच्चे पथ और पथिक ,
दोनों की युगल जोड़ी ।
प्रेम में खोंट नहीं आई ,
किसी ने साथ न छोड़ी ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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