हिन्दी तो होता हिम नदी
हिन्दी तो होता हिम नदी ,शीतल जल बरसाता है ।
शीतल है प्रवाहित होता ,
सबकी प्यास मिटाता है ।।
हिन्दी स्व मृदुल वाणी से ,
सबका मन ये लुभाता है ।
सबका मन है ये मोहता ,
निज प्रभाव दिखाता है ।।
हिन्दी बना प्यारा जगत ,
हिन्दी विश्व को भाता है ।
जो उड़े बिन पंख नभ में ,
उनको धरा शीघ्र लाता है ।।
हिन्दी देत पावन संस्कृति ,
हिन्दी भूमिका निभाता है ।
हिन्द करे गुणगान इसका ,
हिन्दी हिन्द गुण ये गाता है ।।
हिन्द हिन्दी हिन्दू संग रहे ,
प्रेम सौहार्द संग में लाता है ।
मन को मानवता देनेवाला ,
दया उपकार मन भाता है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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