श्यामल बादल
डा उषाकिरण श्रीवास्तवमुरली की मृदु तान सुनाके
मन का मेरे चैन चुराके,
छुप गया है चित-चोर
ढूंढ रहीं है नयनन मोर।
श्यामल बादल उमड़-घुमड़ के
आसमान में गर्जन करके,
करता सावन में बडा शोर
बूंदें बरस रही घटा-घोर।
कोयल वन में कूक-कूक के
भोरें का गुण-गुण सुन -सुन के,
कलियां हुई अधिक विभोर
नाचे झूम -झूम वन मोर।
हरियाली की चादर ओढ़े
सागर-नदियां लहर-लहर के,
धरा का अद्भुत करे श्रींगार
खुशियां बरस रही चहुंओर।
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