"धर्म चाहे जो भी हो, अच्छे इंसान बनो: कर्म ही प्रधान"

"धर्म चाहे जो भी हो, अच्छे इंसान बनो: कर्म ही प्रधान"

यह उद्धरण एक सार्वभौमिक सत्य को दर्शाता है जो धर्म, जाति, या राष्ट्रीयता से परे है। यह हमें सिखाता है कि जीवन में सच्चा धर्म अच्छे कर्मों में निहित है, न कि केवल किसी धार्मिक अनुष्ठान या ग्रंथों के पालन में।

कर्म का महत्व:

हर धर्म अच्छे कर्मों पर बल देता है। ईश्वर या अन्य कोई बाह्य शक्ति, चाहे जो भी नाम से पुकारा जाए, सदैव सदाचारी और परोपकारी व्यक्तियों को पुरस्कृत करता है। दया, क्षमा, सत्यवादिता, और न्याय जैसे गुणों का पालन ही सच्चा धर्म है।

धर्म का स्थान:

धर्म हमें मार्गदर्शन प्रदान करता है, नैतिक मूल्यों को सिखाता है, और जीवन में उद्देश्य प्रदान करता है। लेकिन, केवल धार्मिक क्रियाकलापों में भाग लेने से सच्चा सुख और संतुष्टि प्राप्त नहीं होती।

कर्म फलदाता:

जीवन में सफलता और खुशी हमारे कर्मों से ही निर्धारित होती है। यदि हम दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं, स्वार्थी होते हैं, और अनैतिक कार्य करते हैं, तो हमें दुख और पश्चाताप ही मिलेगा।

सकारात्मक जीवन जीने का तरीका:

इस उद्धरण का पालन करके हम एक सकारात्मक और सार्थक जीवन जी सकते हैं। हमें धर्म, जाति, या अन्य भेदभावों को भूलकर, सभी के प्रति प्रेम और करुणा का भाव रखना चाहिए।

यह सच है कि धर्म हमें जीवन में दिशा प्रदान करता है, लेकिन सच्चा धर्म कर्मों में ही निहित है। हमें सदैव अच्छे कर्म करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि हम एक बेहतर जीवन जी सकें और समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकें।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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