"अवचेतन की उदासी"
अवचेतन में है छिपी वेदना,जैसे कोई अनकही कहानी।
उदास मन की धुंधली छाया,
जैसे कोई खोया हुआ साया।
अवचेतन मन में, उदासी गहराई,
पाई है अबुझ प्यास, तन्हाई।
सोचों का ज्वार, उमड़ता है अंदर,
भावनाओं का तूफां, मन बना समंदर।
प्यास है, पर कुछ नहीं मिलता,
जैसे कोई सपना टूट जाता।
आँखों में आँसू छिप जाते हैं,
धीरे-धीरे होंठ कांप जाते हैं।
खामोशी में डूबे, सपनों के टुकड़े,
यादों की गलियों में, खो जाते हैं दुखड़े।
दिल की धड़कन, धीमी हो जाती है,
आँखों में आंसू, भर जाते हैं।
मन की उदासी गहरी है,
जैसे कोई गहरा घाव है।
कोई नहीं समझ पाता इसका दर्द,
बस आँसू ही बयां करते हैं हर शब्द।
"'कमल' खोजता रहता है बस राहत,
पर नहीं मिलता है हमें कोई सहारा।
बस कहीं एक उम्मीद टिकी रहती है,
कि शायद मिल जाए कभी किनारा।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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