शुभ की बात करो।।
डॉ रामकृष्ण मिश्रकेवल अपशब्दों से रंजित
आरोपो में शील विखंडित।
व्यर्थ अनैतिक गाथाओं पर
अब तो घात करो।।
भले भले हों दाव सभी के
जमे न कहीं कुभाव नभी के।
कुछ कारण अपनाने होंगे
आथस में वरसात करो।।
गलवाही में क्या लगता है
अपने पास बहुत बचता है।
मन को मन से मिलने विली
कोई तो सौगात करो।।
आरोपो में शील विखंडित।
व्यर्थ अनैतिक गाथाओं पर
अब तो घात करो।।
भले भले हों दाव सभी के
जमे न कहीं कुभाव नभी के।
कुछ कारण अपनाने होंगे
आथस में वरसात करो।।
गलवाही में क्या लगता है
अपने पास बहुत बचता है।
मन को मन से मिलने विली
कोई तो सौगात करो।।
रामकृष्ण
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