तारों से भी पार जाऊॅं

तारों से भी पार जाऊॅं

हाथों में मैं बाॅंधकर डैना ,
खग सा उड़ूॅं आसमान में ।
उड़ने में मुझे मिले सिद्धि ,
चार चाॅंद लगे अरमान में ।।
तमन्ना हमारी अब यही है ,
तारों से भी मैं पार जाऊॅं ।
तारों को भी तोड़ गगन से ,
लाकर मैं घर द्वार सजाऊॅं ।।
चाॅंद को उतारूॅं गगन से ,
धरा तिमिर तोम मिटाऊॅं ।
धरा का तिमिर मिटाकर ,
शीतल चाॅंदनी ये लुटाऊॅं ।।
दिन में सदा चमके सूरज ,
रात्रि को भी दिवा बनाऊॅं ।
तारे झिलमिल विश्व करे ,
धरा दिन रात झलकाऊॅं ।।
अंतर्मन भी ज्ञान हो जाए ,
चाॅंद चाॅंदनी खूब छिटकाए ।
धरा से तिमिर मिटे सदा ही ,
दिवा निशा सुंदर हो जाए ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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