महुआ

महुआ

वसंत ऋतु से ले के ग्रीष्म ऋतु तक आम महुआ फल के दिन हवे। एह सीजन में गाँव देहात में बाग बागान में आम के साथे महुआ के भी खूब फूल फल लागत रहल ह। अब बाग बागान सब कट ग‌इला से महुआ के महातम लगभग खतम हो ग‌इल। अइसन कवनो बगीचा तब ना रहल, जवना में आम जामुन के पेड़ के साथे कुछ महुआ के गाछ ना होखे। कहीं कहीं तो पुरा बागान ही महुआबारी रहल। आम का गाछ पर खाली आम ही होत रहल। बाकिर महुआ के गाछ पर महुआ के फूल आउर ओकर फल दोनों के महातम रहे। महुआ के फूल महुआ कहलात रहे आउर ओकर फल के कोइना कहलात रहे। पहिले जब महुआ के गाछ पर फूल लागे तब रात में सब फूल चूके गाछ का नीचे पथारी परल रहे। सुबह सुबह लोग बागान में जाके छ‌ईंटी ढाका में महुआ चुन के अपना घर ले आवत रहे। बाद में ओकरा के धुप में सुखा के घर में रख लेहल जात रहे। कुछ दिन एह तरे महुआ के फूल चूआला के बाद फूल के जगह महुआ के गाछ पर कोइना फल लगत रहे। कोइना फल पक ग‌इला के बाद उ भी धीरे धीरे चू के जमीन पर पथारी पर जात रहे। ओकरा के भी बटोर के लोग सुखा के रखत रहे, जवना से कोइना के तेल पेरात रहे। महुआ के फूल और फल दोनों खाये के काम में आवत रहल।
महुआ के फूल के कच्चा पीस के आटा में मिला के एगो बहुत स्वादिष्ट व्यंजन घर घर में तब बनावल जात रहे जवना के महुआ के लपसी नाम रहे। खुखावल महुआ के भींगो के आटा में सानके हल्का सा गुड़ मिला के औरत लोग महुअर बनावत रहल। एकरा अलावे खुखल महुआ के तीसी के साथ भी भुन के लाटा कुट के खाइल जात रहे , जवना के मीठा स्वाद मिठाई से भी बेहतर रहे। महुअर आउर लाटा खासकर लोग बरसात के सीजन में शरीर के गरम राखे खातीर खात रहे।
कोइना का तेल से तरह तरह के पकवान छानल जात रहे। कोइना के तेल के सामने डालडा आउर कवनो तरह के खाने वाला तेल के कवनो पुछ ना रहे। प्रकृति इ सब फूल फूल आदमी के सेहत और सुखी रखे खातीर देहले रहल परन्तु आदमी अपने हाथ से एकर विनाश कर दिहलस।
अब शहर तो दूर , गांव देहात में भी महुआ के पेड़ एका दुका कहीं कहीं दिख जात बा। महुआ के स्वादिष्ट व्यंजन लपसी, महुअर आउर लाटा अब तो स्वप्न ही हो ग‌इल। आज कल के नयका लड़की लड़का तो इ सब सुन के आउर पढ़ के आश्चर्य करिहें जे इ सब कौन स्वादिष्ट व्यंजन रहल। जय प्रकाश कुवंर
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