बैठा हुआ सरे बाजार, बेंच रहा हूँ मैं सम्मान।
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
बैठा हुआ सरे बाजार, बेंच रहा हूँ मैं सम्मान।
भीड़ खरीदारों की बड़ी दुरन्त,
सभी आतुर हैं सन्त-असन्त,
सस्ता बहुत माल ,साथियो!दे दो कौड़ी-सा अपमान।
दिक्कत नहीं मुझे कुछ भी है,
बिक जाने की ही जल्दी है ,
अच्छा, जितना छूटे शीघ्र; निर्ल्वयनी-जैसा अभिमान।
माल मिलेगा सबको ,भाई !
व्यर्थ करो मत हाथापाई,
इतनी सस्ती वस्तु-निमित्त, झगड़ा कुत्तों की पहचान ।
झोली जबतक नहीं भरेगी,
सबकी आशा नहीं पुरेगी,
जबतक नभ में है दिनमान, खुली रहेगी यह दूकान ।
भारतरत्न, पद्मश्री भूषण,
तमगे हैं खिताब के शोभन ,
मोल-तोल का नहीं सवाल,कीमत मिट्टी-सा ईमान ।
बैठा हुआ सरे बाजार, बेंच रहा हूँ मैं सम्मान ।(निर्ल्वयनी =साँप का केंचुल)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com