तुम मेनका नहीं हो,

तुम मेनका नहीं हो,

और नहीं उर्वशी हो।
तुम प्रेम हो किसी का,
उसके मन में वशी हो।।
रंभा, उर्वशी , मेनका,
ये सभी इन्द्रलोक की परियाँ हैं।
जितनी भी सुंदर हों लेकिन,
नर्तकियां हैं और चेरियां हैं।।
तुम चेरी नहीं हो,
तुम प्रेम हो किसी का।
तुम दोनों के बीच में है,
एक बराबर का रिश्ता।।
रूप काफी नहीं है,
बस रिश्ता निभाने को।
स्वभाव में मधुरता चाहिए,
प्रेम में एक दूजे को पाने को।। 
 जय प्रकाश कुवंर
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