गर्मी का ऐसा आलम है,
झरका करता बे दम है।सुबह सुबह रोज सूरज,
मिज़ाज लेकर आता है।
अंदर छुप कर पड़े रहो,
वर्ना सारा बदन जलाता है।
टेम्परेचर चालीस पार हुआ,
अब छाता भी बेकार हुआ।
बच्चे स्कूल जाते हैं,
घर छटपट करते आते हैं।
अप्रैल अभी महीना है,
मई जून अभी तो आना है।
गर्मी का आलम ऐसा रहा,
तो कैसे जाएगा ताप सहा।
कामकाज से बाहर निकलना है,
वर्ना पेट तो कैसे चलना है।
प्रकृति का अपना कानून है,
कभी दिसम्बर तो कभी जून है।
हे सूर्य देव कुछ रहम करो,
अपना नियम कुछ ढीला करो।
तेरी कृपा से हम बच पाएंगे,
वर्ना झुलस कर मर जाएंगे।
जय प्रकाश कुवंर
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