माॅं मुझे विश्राम दे

माॅं मुझे विश्राम दे

करता रहूॅं तन मन से सेवा ,
जीवन को पावन आयाम दे ।
पहुॅंच सकूॅं शीर्ष चोटी तक ,
तब तू माॅं मुझे विश्राम दे ।।
दे दो मुझे तू वह मस्तिष्क ,
मन मस्तिष्क मेरे तू राम दे ।
बहूॅं प्रेम की अविरल धारा में ,
वह कृष्ण कन्हैया श्याम दे ।।
सदा तीर्थ बना रहे जीवन ,
पावन जीवन पावन धाम दे ।
बहाता रहूॅं काव्य की धारा ,
काव्य जीवन का नवनाम दे ।।
जन जन मिल एक हो जाऍं ,
मधुर मिलन भी निष्काम दे ।
एक दूजे के काम आऍं सदा ,
ऐसी कामना मन में थाम दे ।।
ऊॅंच नीच का भेदभाव मिटे ,
अंतर्मन में पावन तू ईमान दे 
अंतर्मन हैवानियत मिटाकर ,
हर मन में बसा तू ही इंसान दे ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।
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