जितना नाचे मत्त मयूरा|

जितना नाचे मत्त मयूरा|

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•

(पूर्व यू.प्रोफेसर)
जितना नाचे मत्त मयूरा,
फर्क नहीं पड़ता बदली को।
बिखर गया चिथड़ा-चिथड़ा हो,
गिरा दिया तन पर बिजली को।
नदी चली सौरत-उतावली,
निगल गया पथ में मरु -दानव।
उधर प्रिया की अगवानी को
लहर लहर उफनाया अर्णव ।
नवपल्लव-शय्या सज्जित कर,
पन्था निहारता रहा सुमन ।
तितली रानी भी उतावली ,
पा कर सौरभ -मिस आमन्त्रण।
उड़ी चली मृदु पंख पसारे,
बीच राह में उठा बवंडर।
साध धरी की धरी रह गई,
पंख टूट कर गिरे धूल पर।
बेचैनी में चैन समाया,
अटपट जीवन की परिभाषा।
कोई नट निष्ठुर रचता है , 
क्षणभंगुर यह खेल तमाशा।
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