नयन , ऑंख , चक्षु , नेत्र
समस्त अंगों में प्रधान हैं ऑंखें ,ऑंखों पे निहित हजारों आस ।
ऑंखों बिन यह जीवन अधूरा ,
ऑंखों बिन तन है जिंदा लाश ।।
सारे इरादे तब धूमिल हो जाते ,
जीवन गर्क का होता एहसास ।
नजदीकी भी तब दूरी बनाते ,
दिखता नहीं कोई उनके पास ।।
सारी तमन्नाओं पे पानी फिरते
जीवन होता है पूर्णतः निराश ।
तब जीवन ये दूसरे के सहारे ,
पूर्णतः जीवन दूसरे का दास ।।
किंतु ईश्वर निर्दयी नहीं हैं होते ,
अंतर्मन जगाते हैं नव विश्वास ।
अंतर्चक्षु रूपी तब ज्ञान वे देते ,
तब आता नवजीवन उल्लास ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com