नयन , ऑंख , चक्षु , नेत्र

नयन , ऑंख , चक्षु , नेत्र

समस्त अंगों में प्रधान हैं ऑंखें ,
ऑंखों पे निहित हजारों आस ।
ऑंखों बिन यह जीवन अधूरा ,
ऑंखों बिन तन है जिंदा लाश ।।
सारे इरादे तब धूमिल हो जाते ,
जीवन गर्क का होता एहसास ।
नजदीकी भी तब दूरी बनाते ,
दिखता नहीं कोई उनके पास ।।
सारी‌ तमन्नाओं पे पानी फिरते
जीवन होता है पूर्णतः निराश ।
तब जीवन ये दूसरे के सहारे ,
पूर्णतः जीवन दूसरे का दास ।।
किंतु ईश्वर निर्दयी नहीं हैं होते ,
अंतर्मन जगाते हैं नव विश्वास ।
अंतर्चक्षु रूपी तब ज्ञान वे देते ,
तब आता नवजीवन उल्लास ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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