काल-व्याध का क्रूर शिलीमुख,

काल-व्याध का क्रूर शिलीमुख,

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•

(पूर्व यू.प्रोफेसर)
काल-व्याध का क्रूर शिलीमुख,
क्रौंच-चिरविरह बीज बो गया।
मुनिवर के चिन्तन-विपाक से ,
रामकथा-अश्वत्थ हो गया ।
काल-व्याध जब से ईश्वर का
वज्रवक्ष चिरसखा हो गया।
विष-विशिखों से विद्ध भीष्मवत्
शर-शय्या पर विश्व सो गया ।
तुम अगम्य हो एक पहेली,
मुण्डमालिनी खप्परवाली।
अपने ही सिरजे जीवों का
कितना रुधिर पियोगी काली?
जगती की पीड़ा में क्रीड़ा,
यह कैसा बीभत्स विडम्बन।
तोड़ रहा अब तुमसे तिनका,
लगता व्यर्थ सकल आराधन।
(शिलीमुख=बाण )
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