नहीं लड़खड़ाते कदम राह में

नहीं लड़खड़ाते कदम राह में 

डॉ रामकृष्ण मिश्र
नहीं लड़खड़ाते कदम राह में हैं
अभी यार मैं बे सहारा नहीं हूँ।।

दिशाएँ खडी़ बाँह फैलाए अपनी
सदा ही ,दिवा हो कि हो घोर रजनी।
न गिरने का भय है न थकने की पीड़ा
अभी मस्त खुश मन, बेचारा नही हूँ।।
खड़े राह में हैं हरे शाख वाले
हमारे सृजन-भाव सारे सँभाले।
उन्हीं से मिली प्रेरणाएँ हरी हैं
प्रखर ताप में मन से हारा नहीं हूँ।।
यही रत्नगर्भा जगत् पालिका है
यहीं जिंदगी की खुली संचिका है।
यहीं मातृ मृतिका मिला लेगी खुद में
प्रथम क्रम है मेरा दुवारा नहीं हूँ।। 
रामकृष्ण
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