आज मैं खुद से इश्क किए जाती हूँ

आज मैं खुद से इश्क किए जाती हूँ

डॉ प्रतिभा रानी 
आज मैं खुद से इश्क किए जाती हूँ
मंजिल को अपने पास ही पाती हूँ ।
दिल में फिर से उमंगे उठने लगीं
मन पंछी बन गगन में उड़ने लगें
आज मैं ख्वाबों की मोती संजोती हूँ ।।
खुद से खुद की पहचान मिली
मुझे खुशियां तमाम मिली
आज मैं आशाओं के गीत गाती हूँ ।।।
चमचम चमकती है माथे की बिंदिया
खनखन खनकती है हाथों की चूड़ियां
जमी नहीं आसमां पर चलती जाती हूँ ।v
सूरज की किरणों ने दी होठों को लाली
चांद सितारों की चुनरिया ओढ़ मतवाली
आज बनके दीवानी डोलती हूँ v
हवाओं के संग लहराऊँ
कोयल के संग मैं गाऊँ
गा गा कर खुशियां लुटाऊँ
आज शर्म से लाल हुए जाती हूँ v ।
घटाओं से मांग आंखों में कजरा,
बहारों से मांग पहनु फूलों का गजरा,
बांध के पैरों में बिजली की पायल
थिरक थिरक कर नाचती हुँ v ।।
अभी किसी से नहीं कोई वास्ता मेरा
नदियों मत रोको तम रास्ता मेरा
अब दूरी सही जाती नहीं
क्यों तुझे नजर आती नहीं,
कब से खड़ी यहाँ बेचैन हुए जाती हूँ v।।।
आंचल सरकना दिलों का बहकना
नजरों का झुकना झुककर फिर उठना
आज मैं खुद में ही समाई जाती हूँ ।x
दिलों में होती है झंकार
सांसो में बजती है सितार
होकर जीवन नैया पर सवार
लिए विश्वास की पतवार
आज खेती हुई मंजिल की ओर जाती हूँ x
मंजिल से पहले नहीं रुकना मुझको
इन धाराओं के आगे नहीं झुकना मुझको
खुद नैया को किनारे लगाऊँगी
अपनी मंजिल पर विजय पाऊँगी अंदर हौसलों के दीप जलाएँ जाती हूँ x ।
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