नशा भांग का सबक जिंदगी का

नशा भांग का सबक जिंदगी का

मंजू भारद्वाज
चारों तरफ होली का माहौल था। कभी इधर कभी उधर से 'होली है ,,,,,,,,,,,,,,होली है,,,,,,,,,,, ' की गूंज सुनाई दे रही थी। माँ और रागनी रसोई में पकवान बनाने में व्यस्त थे। दरवाजे पर जोर जोर से घंटी की आवाज सुन कर ,रागिनी दरवाजे की तरफ भागी। ''गरम चाय की प्याली हो ,,,,,,,,,,,,सामने बैठी घर वाली हो ,,,,,,,,,,,,,'' जोर जोर से गाते हुए दीपक ने रागनी के गाल में चिकोटि ली। ''माँ ,,,,,,,,,,,,,देखो इसे''। रागनी ने लगभग चीखते हुए कहा। ''अरे क्या हुआ ,मैंने तो सिर्फ चाय मांगा है। '' ''नहीं मिलेगी चाय वाय ,गैस खाली नहीं है। '' रागनी ने मस्ती लेते हुए कहा । ''अच्छा तो ,,,,,,,,,,ये ले ,,,,,,,'' कहता हुआ दीपक ने पॉकेट से रंग निकाला और रागनी के चेहरे पर मल दिया। ''माँ ,,,देखो न इसे.....'' कहते हुए रागनी भागती हुई आई और मेरे पीछे छुप गई। ''अरे ,,,,,,,,,,, '' मेरे वाक्य भी पूरे नहीं पाए थे कि दीपक ने मेरा चेहरा भी गुलाल से रँग दिया और फिर मुझे और रागनी को गले लगा कर जोरजोर से गाने लगा। ''बुरा न मानो,,,,,,,, होली है, बुरा न मानों,,,,,,, होली है।'' पूरे घर में यही तो है मस्त मौला ,जिससे ये घर रौशन रहता है। शादी हो गई है पर बचपना नहीं गया है। हँसी , मजाक ,मौज - मस्ती, छेड़ छाड़ का प्रायवाची है दीपक। लॉफ्टर चैनल देखने का मजा भी दीपक के साथ ही आता है। उसके ठहाके सुन कर ही सबों के चेहरे पर मुस्कान आजाती है। तभी बाबूजी की आवाज सुनाई पड़ी।
''अरे कोई पंखा चला दो भई।''
''हाँ। होली है ,,,,,,बाबूजी ,,,,,,'' कहता हुआ दीपक बाबूजी के कमरे की तरफ भागा।
''अरे तुमलोगों को होली की पड़ी है पहले पंखा चलाओ '', बाबूजी ने झुँझलाते हुए कहा।
''ओके ,,,,,,अब ठीक है ।'' पंखा चालू करते हुए दीपक ने पूछा
''अरे तुमने तो आंधी चला दी है।''
'' अब ठीक है। '' पंखा कम करते हुए दीपक ने कहा।
''अरे तुम्हें तो मस्ती चढ़ी रहती है लो तुमने तो बिल्कुल बंद ही कर दिया। ''
"अरे बंद नहीं किया है दो नंबर पर किया है ''
''तीन पर करो भई ''
''लीजिये कर देते है''
''अरे भाई तुम तो फिर आंधी चला दी। ''
''ओह्हो,,,,बाबूजी दो और तीन के बीच कोई नम्बर नहीं है ,हम क्या करे। ''
"अरे भाई तुम तो बुरा ही मान गए। ''
''तो क्या करे ,,,आप समझते ही नहीं है,सिर्फ गुस्सा करते हैं। ''
"अरे बेटा हम गुस्सा नहीं कर रहें हैं , जब तुम बूढ़े होगे तब पता चलेगा।''
'ठीक है'' कहता हुआ गुस्से में दीपक कमरे से बाहर निकल गया।उसका मूड ख़राब हो गया था। 'जब तुम्हे होगा तब पता चलेगा ' बाबुजी हमेशा ऐसा ही बोलते है। उनकी बात सुन कर दीपक खिसिया गया था। '
'अरे बेटा मेरा दिमाग काम नहीं करता है , मेरा सर भन्नाता रहता है ,तुम लोग नहीं समझोगे।'' बाबुजी ने बड़बड़ाते हुए कहा। तभी लाउडस्पीकर पर गाने की तेज आवाज आने लगी , 'रंग बरसे भीगे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,"
'लो अब ये साले स्पीकर पर चिल्लायेंगे सोने नहीं देंगे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,, '' चीखते हुआ बाबूजी ने कहा । रागनी टेबल पर सारे पकवान सजा रही थी ।मैं पूरी तलने लगी।
''अरे वाह मजा आ गया ,,,,,,,,'' ,दीपक ने चहकते हुए कहा।
''खाना देख कर या बाबुजी की डांट सुन कर '' रागनी ने मस्ती लेते हुए कहा।
''अबे ,,,,,,,,,,,,, मार दूँगा '' दीपक ने मुक्का दिखाते हुए कहा ,सब खिलखिला हँस पड़े। नाश्ता कर दीपक और रागनी दोस्तों के साथ होली खेलने जाने की तैयार करने लगे।
''अब तुम लोग कब तक आओगे ,,,,,,'' मैंने आदतन पूछ ही लिया।
''अरे माँ चिंता मणि आज तो चिंता छोड़ दो ,शाम तक लौट आयेंगे '' कह कर दोनों हॅसते हुए बाहर निकल गए। मैंने भी काम समेटने में लग गई । बहुत थक गई थी,मन कर रहा था कुछ देर आराम कर लूँ। सब से निपट कर बिस्तर पर लेटी ही थी कि दरवाजे पर जोरजोर से घंटी बजने लगी। खोला तो सामने दीपक ,रागनी और परी (दीपक की दोस्त )को देख कर मै हैरान हो गई। ''अरे इतनी जल्दी कैसे आगए '' मैंने आश्चर्य से पूछा
''इन्ही ही से पूछो ,,,,'' दोनों को अंदर की तरफ ढकेलते हुए रागनी ने कहा।
''अरे क्या हुआ ,,, '' इन्हे देख कर मैं थोड़ा घबड़ा गई। '
'हा ,,हा ,,हा ,,,,,दीपक और परी पर तो जैसे हॅसी का दौरा पड़ गया था ,दोनों हॅसे जा रहे थे। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था ,मैंने रागनी से ही पूछना उचित समझा। मेरे पूछने से पहले ही वह बोल पड़ी '' माँ इन लोगों ने भांग पी रखी है।''
''भाँग ,,,,और तुमने रोका नहीं '' मैंने रागनी से पूछा। '
'माँ मै क्या करती ? इतनी खूबसूरत जगह थी ,बहुत भीड़ थी ,जगह जगह रंगों से भरे बड़े बड़े ड्रम रखे थे ,बड़े बड़े सिंगर आये हुए थे, गाने बजाने का मस्ती भरा माहौल था,सब नाच रहे थे, अचानक ऋतू मिल गई हम दोनों होली खेलने और गप्पें मरने में व्यस्त हो गए ,पता नहीं कब इसने इतनी भाँग पी ली और वो तो ऋतू ने पूछा दीपक कहाँ ,तो मैंने भी इधर- उधर देखा मुझे भी दीपक कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। भीड़ बढ़ रही थी ,मै इसे ढूढ़ने लगी देखा तो ये जनाब बिल्कुल नशे में टुन हो कर एक कोने में पड़े थे । वहीं परी भी भांग पी कर टुन थी ,मुझे देखते ही दोनों मुझसे चिपक गए।माँ ये दोनों मुझे हिलने भी नहीं दे रहे थे। मैं क्या करूँ मुझे समझ ही नहीं आरहा था। दोनों की हालत देख कर तो मैं घबड़ा गई थी। वो तो अच्छा हुआ वहाँ मुझे कबीर मिल गया था । मैंने उससे रिकवेस्ट की, वही हमे यहॉं छोड़ कर गया है।''रागनी ने पूरी कहानी एक साँस में कह डाली।
''अरे उसे ऎसे ही क्यों जाने दिया ,मुँह तो मीठा करा देती होली है। ''
''माँ उसकी बीबी भी भाँग पी कर टुन हो गई थी ,वो नीचे गाड़ी में ही बैठी थी इसीलिए वो तुरंत चला गया।''
अरे ये क्या ,,,,बेचारा '' मैंने मुस्कुराते हुए कहा।'
'सच में माँ वह भी बहुत परेशान था। तीनो नशेड़ियों को पीछे सीट पर डाल कर ,वह रास्ते भर बड़बड़ाता रहा ''साला, सोंचा था होली है., सब दोस्त यहाँ मिलेंगे, खूब इन्जॉय करेंगे ,आते ही मुझे एक नम्बर की तलब होने लगी ,बाथरूम गया तो वहाँ लाइन लगी हुई थी, ,,वहाँ थोड़ा वक्त लग गया ,लौटा तो महारानी भांग पी कर टुन पड़ी थी ,मुझे देख कर इसके अंदर का डाँसर जग गया ,''ये दुनिया पीतल दी ,,,,,,,,'',गा गा कर हेलन बन गई थी।बाप रे ,बाप,,,,मैं तो घबड़ा गया। मुझे लगा घर जाना ही ठीक है। इसीलिए उलटे पाँओ घर लौट रहा हूँ। ,ऐसा लग रहा है जैसे बाथरूम करने ही मैं यहाँ आया था।''पीछे सीट पर इन तीनों नशेड़ियों ने तो गाड़ी में भी हँगामा मचा रखा था।कबीर की बीबी' पीतल दी ,,,,,,पीतल दी ,,,,'का राग अलाप रही थी ,और दीपक और परी की खी ,,खी ,,,बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी ''रागनी की बात सुन कर मै भी अपनी हँसी नहीं रोक पाई । '
'माँ बहुत भूख लगी है'' दीपक नशे में झूमते हुए बोला ।
''मुझे भी ,,,,,,,,,,,, '' परी ने रागनी का दुपट्टा खींचते हुए कहा। दोनों भाँग के नशे में क्या कहते है ,,,,,हाँ , ,,,,वो ,,,,टुन थे। मेरे लिए ये ' टुन' शब्द नया था ,पर सुनकर अच्छा लग रहा था। मैं उनके लिए खाना लाने रसोई की तरफ बढ़ गई ,रागनी भी मेरे साथ हो ली ''बेटा इन्हें खाना खिला कर सुला दे ,अब ये दोनों किसी काम के नहीं हैं।''
''हाँ माँ, '' रागिनी ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा. दोनों खाना खाते ही खर्राटे भरने लगे। सुबह जब नींद खुली मैं सीधे दीपक के कमरे में गई ,वह बेसुध पड़ा था रागनी जागी हुई थी ,मुझे देखते ही बोल पड़ी ''माँ इसने रात भर सोने नहीं दिया ,पूरी रात 'मुझे पकड़ो,,,,,,,,,,,, मैं उड़ रहा हूँ ,अरे ,,,, पकड़ो ,,,,,,पकड़ो,,,,,मैं गिर रहा हूँ ' करता रहा। मुझे लगा शायद दीपक का नशा अभी तक उतरा नहीं है। ''जा बेटा कुछ खटाई ले आ ,खटाई खाने से नशा उतर जाएगा '' मैंने रागनी से कहा। वह रसोई से खटाई ले आई और दीपक को चटाने लगी। मुँह में खटाई लगाते ही , ''हट यार ये क्या है ? आँख खुली नहीं कि ,,,,,,,,,ओह ,,,,,,, ,गुस्से में दीपक ने कहा ।
''खटाई खाने से तुम्हारा नशा उतर जायेगा '' रागिनी ने हॅसते हुए कहा। तभी परी अंगराई लेते हुए आगयी। ''अरे तुम अभी यही हो ? आश्चर्य से दीपक ने कहा। ''हाँ और कहाँ जाऊँगी,पापा ऐसे देखेंगे तो बोटी बोटी काट देंगे ,होली ,दिवाली सब बंद हो जायेगा।थैंक् गॉड रागनी ने बचा लिया ,पापा को फ़ोन कर के बोल दिया आज परी हमारे पास रहेगी। अब सर भी दर्द से फटा जा रहा है ,और लूजमोशन भी हो रहा है ''परी ने धीरे से कहा और हॅसने लगी । रागनी ने बड़ी -बड़ी आँखे दिखाते हुए कहा ''तुमदोनों अपना पागल पन ख़त्म करो नहीं तो मैं दोनों की बोटी बोटी कर दूंगी। मेरी पूरी होली बर्बाद कर दी।'' ''होली तो हमारी बर्बाद होगई ,पूरी रात बाथरूम भागती रही ,इतनी नींद आरही थी मन कर रहा था वही सो जाऊँ '',कह कर परी जोर जोर से हॅसने लगी ,उसे देख हम सब खिलखिला कर हँस पड़े। रागनी की हँसी तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। बहुत मुश्किल से खुद पर काबू करते हुए बोली ''पता है कल तुमने कितना खाया है''
''मैंने ,,,,मैंने तो कुछ खाया ही नहीं ,,,'',परी ने आश्चर्य से रागनी की तरफ देखते हुए कहा।-।
'',तुमने तो माँ की पूरी मेहनत पर पानी फेर दिया है। '' '
'अरे,, मैंने क्या किया है। '' परी ने मासूमियत से पूछा। आवाज सुन कर मै भी कमरे में आगयी थी। रागनी उसकी फिरकी लेते हुए बोली '' माँ ने कल तुम्हे इतने सारे स्वादिष्ट पकवान खिलाये,और तुमने रात भर में सारे निकाल भी दिया।'' ''हाँ आंटी,,,,, मैंने कल बहुत खाया था क्या?'', परी मेरी तरफ रुख करते हुए बोली। ''ज्यादा नहीं दस पूरी ,पाँच मालपुआ ,आलूदम ,चना मसाला ,चार दहीवडा ,दाल मखानी ,भरवाँ बैगन ,पापड़,,,,,,,''मेरी बात को काटते हुए पूजा बोल पड़ी ''बस ,,,,,,,,,बस आंटी ,ओ माय गॉड ,,,,,,,,,इसी लिए मेरे पेट की हालत ख़राब है। ,'' रागनी और मै खिलखिला कर हँस पड़े। दीपक हमारी बातों से बेखबर किसी गंभीर सोच में डूबा हुआ था। पूजा का ड्राईवर आगया था ,पूजा फ्रेश हो कर आई और ''आई लव यू ऑन्टी '' कहते हुए मेरे गले से लग गई। मैंने भी प्यार से सर पर हाथ फेरते हुए कहा ''आई लव यु टू बेटा। '' ''थैंक्स डिअर तुमने जो मेरे लिए किया '' कहते हुए परी ने रागनी को गले से लगा लिया। परी के जाने के बाद रागनी भी रजाई में घुस गई। होली की थकान एक दिन में उतरती कहाँ है। दीपक के चेहरे की उदासी अच्छी नहीं लग रही थी। वह अचानक उठा और तेजी से बाबूजी के कमरे की तरफ भागा ,मै भी घबरा गई ,उसे बाबूजी से गले लगे देख मै दरवाजे के बाहर ठिठक गई ,थोड़ी देर बाद जब वह बाहर आया तो उसकी आँखे भींगी हुई थी ,मुझे देखते ही मुझसे लिपट गया। मैंने कभी दीपक को इतना भावुक नहीं देखा था। हमेशा मस्तमौला रहने वाला मेरा बच्चा आज इतना भावुक क्यों हो रहा है ,जानने को मै व्याकुल हो गई। दीपक ने बताना शुरू किया ''जब मुझे भांग का नशा चढ़ गया था ,मुझे पूरी दुनिया घूमती नजर आरही थी। मै खड़ा नहीं हो पा रहा था। मेरे सभी अंग मुझसे जुड़े थे पर कोई मेरे बस में नहीं था। कुर्सी पर मै अपाहिज की तरह पड़ा था। अनजाने लोगों के बीच मै खुद को बहुत ही बेबस महसूस कर रहा था। बगल में पानी का ग्लास था पर मैं उसे उठाने में असमर्थ था ,जैसे रागनी आई मैंने उसे कस कर पकड़ लिया। एक डर था कहीं वो खो न जाये , न दिमाग बस में था, न शरीर। मै खुद को बिल्कुल असहाय महसूस कर था। माँ उस एक पल ने मुझे अहसास दिलाया की बेबस इंसान कितना मजबूर होता है। उस पल अपनों की कितनी जरूरत महशुस होती है। बाबूजी की मज़बूरी का अहसास मुझे अंदर तक कचोट गया,आज मैं उनकी बेबसी को अहसास कर पा रहा हूँ। आप सब मेरी ताकत हो माँ '' कहता हुआ वह मुझसे लिपट गया और काफी देर तक लिपटा रहा। मेरी भी आँखे भर आई। जीवन तो कई रंगों का समन्वय है। रंगों में रंग है प्यार का, सम्मान का ,जिम्मेदारी का ,सेवा का ,जिसमे अब रंग गया था दीपक। इस होली ने कई अनछुए रँगों से रंग दिया था उसे। वह हर कमरे में जाकर पापा के ,रागनी के सर पर हाथ फेर रहा था। उसका मासूम मन जिन्दगी की कड़वी पर गहरी सच्चाई से टकरा गया था। अब उसके मस्तमौला ,लापरवाह ,व्यक्तित्व में समझदारी की ,जिम्मेदारी की चमक आगयी थी।                    
मंजू भारद्वाज कृष्णप्रिय
 हैदराबाद
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