नेता

निचला नेता उनकर तोता ,

नेता

नेत नात होखेलन नेता ,
कलियुग के कहेलन त्रेता ,
केहू के होखेलन डुबोता ,
केहू के होखेलन उजेता ।
कबहीं बनस खुदे उ क्रेता ,
कबहीं बनस खुदे विक्रेता ,
कहीं उदार कहीं गद्दार कहावे ,
तबहूॅं बनल रहेला चहेता ।
उनके बंदूक कंधे पे ढोता ,
जीत बाद ना छोड़े खोता ,
पाॅंच बरिस जमके सोता ।
जीत के गईलन प्यार में ,
आ गईलन अब किनार में ,
जनता मजधार डुबे मरे ,
हम ना गईलीं मजधार में ।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।
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